सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६ :: तुलसी चौरा
 


दावेदारों ने की है।

शर्मा और कमली को तारीख भी दे दी गयी है। शर्मा ने वेणुकाका से ही सलाह की। काका शांत रहे।

'देखा, विवाह के एक सप्ताह पहले की तारीख जान बूझकर दी है। कोई बात नहीं। प्रैक्टिस नहीं रही, इसलिये जो पढ़ा भूल गया। पर इस मुकदमें में तुम दोनों का बकील मैं बनूँगा। देख लेना सबके मुँह पर कालिख पोत दूँगा।'

'पर आप क्यों परेशान होंगे? किसी और वकील पर छोड़ देता हूँ, आपको विवाह की तैयारियाँ भी तो करनी है।'

'कुछ नहीं, वह काम भी चलेगा। इस केस में कुछ तर्क हैं। उस पर पहले ही सोचकर रख लिया है, बस पूरे केस को हथेली पर रख- कर फूँक कर उड़ा दूँगा। तुम चिंता मत करना।'

'मेरी बेइज्जती करने के लिये इस बात को अखबारों में दे दिया है।'

कितने केस रोज निपटाये जाते हैं, पर उनकी तो खबर नहीं बनती।

'अरे नहीं यार। यहाँ मामला विदेशी का है वह उनके लिये लिखेंगे―विदेशी का मन्दिर प्रवेश―धर्म भ्रष्ट। ऐसे हथकण्डे अखबारों की बिक्री के लिये जरूरी हैं।

जिन लोगों ने मानहानि का दावा किया है, कुछ तो धर्माधिकारी हैं। हो सकता है, किं पुजारी भी डर के मारे खिलाफ गवाही दे डाले।

'तुम्हें याद है कि उस दिन पुजारी कौन था?'

'जब भी कमली गयी है रवि, बसंती या पारू ही साथ में रहे हैं। उनसे पूछ लेंगे तो पता चल ही जायेगा।'

'यह तुम तुरन्त पता कर लो फिर उन्हें बुलवाकर बातें कर लेते हैं। केस में यह बहुत जरूरी हैं हमारे लिये।'