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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/१५९

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तुलसी चौरा :: १५७
 

'ठीक है आज ही पूछकर बता दूँगा। कोई गवाह और भी चाहिये।'

'तुम्हारा संगठन बाला कार्यकर्ता मित्र दे सकेगा।'

'उनकी गवाही से क्या होगा। वह तो इन बातों को मानता ही नहीं।'

'वह तो दूसरी बात है। मैंने तो सुना है, कि उनके यहाँ की गोष्ठी में भी कमली ने पहले गणेश वन्दना से भाषण शुरू किया था। वह उनके सिद्धान्तों के खिलाफ था पर सभ्यता के नाते वे लोग चुप रहे।'

'हाँ―पर इसका केस से क्या सम्बन्ध है?'

'वह तो मुझे देखना है न। वह साथ देंगे।'

'जरूर देंगे। देशिकामणि सच जरूर बोलेगा किसी से नहीं डरता, वह!'

'बस यही काफी है।'

"सीमावय्यर के अन्याय की खामियाँ बह बेचारा भुगत रहा है। अभी लौटा है अस्पताल से।"

'क्या करें शर्मा! भभूत और ईश्वर भक्ति उन्हें अच्छा और नेक होने का प्रमाण पत्र जो दे देती है।'

'यदि निडर और सच्चे मन से कहूँ तो देशिकामणि ही सही मायने में आस्तिक है।' सीमावव्यर को घोर नास्तिक कहा जा सकता है।

'ढोंग करने वालों से बेहतर ही हैं, जो साफ और निष्कपट हैं। सीमावय्यर न तो शास्त्र जानते हैं, न पुराण, न रिवाज। बस ढोंग करते हैं। किसी की बुराई करो, तो उसके बारे में पूरी जानकारी भी होनी चाहिये। उस सिद्धान्त को देशिकामणि ने समझा है। इसलिए तो उसने सारे शास्त्र पढ़ डाले पर, पर उसे देखिए तो कितना विनम्र है।

'मेरी तो इच्छा है, सीमावय्यर को फँसाया जाय और उनसे क्रास सवाल किए जाएँ।'

'वे कहाँ आएँगे? दूसरों को भड़काकर चुप बैठना उनकी आदत