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१५८ :: तुलसी चोरा
 


है। उन्हें तो दूसरों का नुकसान ही करना है। वही एक काम तो वे जानते हैं। उनकी भक्ति वक्ति तो महज ढोंग है।’

‘कमली के जाने से मंदिर अशुद्ध हो गया है न उनका और इससे पता नहीं चलता कि खुद कैसे हैं?’

‘वैसे इसमें कमली को फिजूल में घसीटा गया है। उनका गुस्सा मेरे और देशिकामणि के ऊपर है। मुझे तंग करना है, सड़क पर लाकर छोड़ना है। सीमावय्यर पहले मठ का काम देखते थे तो अच्छे पैसे बन जाते थे। पर मठ के मैंनेजर को लगा उनसे मठ की प्रतिष्ठा धूमिल पड़ जाएगी। इसलिए मुझे कार्य भार सौंप दिया, तब से और गुस्से में हैं। फिर उन्होंने कोशिश की कि मैं उनकी इच्छा के अनुसार चलूँ। खेत बटाई पर उठाने से लेकर, जमीन किराये पर देने तक। पर मैं नहीं माना। उस पर भी नाराज हैं।’

‘देखो शर्मा सीमावय्यर एक बार विटनेस बाक्स में चढ़ जाएँ तो यह सब एक्सपोज कर दिया जाएगा।’

‘उनका फँसना तो मुश्किल है वे तो पानी के साँप हैं सिर भर बाहर निकालते हैं, हाथ में पत्थर उठाया कि कि नहीं भाग कर छिप जाते हैं।’

‘क्या बढ़िया उदाहरण दिया है। ऐसे ओछे आदमी की तुलना तुम साधारण साँप से भी नहीं करना चाहते। साँप का अपमान जो होगा।’

साधारणतया साँप में खुदारी होती है उसे मारने दौड़ो तो फुंका- रता है, फन उठाता है। काटने भी दौड़ता है।

शर्मा जी ने जिस तरह सीमावय्यर का चित्रण किया, वेणुकाका खूब हँसे। फिर बोले―

‘मंदिर के लिये कमली ने जो चँदा दिया है उसकी रसीद मिल गयी। उसे संभालकर रखा है। क्या लिखा है उसमें याद है?’

‘आस्तिकों! यह आपका पुनीत कार्य है। आप खुशी से दान