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तुलसी चौरा :: १५९
 


करें। शायद यही लिखा है। फिर दान देने वालों का नाम उसके नीचे धर्मकर्ता के हस्ताक्षर हैं।’

‘उसे ले आना, याद से।’

‘सुनो, यह लम्बा तो नहीं खिंचेगा। ऐसा न हो कि विवाह की तैयारियाँ न हो पायें।’

‘न मुझे नहीं लगता। उन लोगों ने इसमें जल्दबाजी की है। चूँकि मंदिर के भ्रष्ट होने और उसके शुद्धीकरण का मामला है इसलिये जल्दी ही कार्यवाही करने की इच्छा प्रकट की है, उन्होंने। इसलिये केस की सुनवाई भी जल्दी होगी।’

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कमली के शंकरमंगलम आने के दिन से लेकर, आज तक की सारे घटनाओं तत्संबंधी गवाहों की एक सूची तैयार कर ली। वे लोग, जो उनके काम आ सकते थे, उन लोगों को कहलवा भेजा।

मंदिर के पुजारियों से मिलना तय हुआ। वेणुकाका ने कमली को बुलबा कर कहा, ‘उन लोगों से यहाँ बात करूँगा। जब वे लोग आएँगे, तुम इसी बैठक में कैसेट रिकार्ड आन कर देना और दीया जलाकर श्लोक पढ़ती रहना। या तो चुप हो जाना या उठ कर चली जाना।’

शाम, पुजारी वेणुकाका से मिलने आए। काका बैठक के झूले पर बैठे थे। पास ही में एक ऊँची चौकी पर दीपदान प्रज्वलित किया गया था। चौकी के नीचे कैसेट रिकार्डर था।

‘ओंकार पूविके देवी। बीणा पुस्तक धारिणी। वेदमादः नमस्तु- भ्यम अवैतप्यप्रयच्छ मे।’

कमली ने श्लोक को गुनगुनाया। पुजारीगण भीतर आए तो वेणुकाका और कमली ने उठकर उनका स्वागत किया।

काका ने एक-एक को प्यार से बुलाकर बेंच पर बिठा दिया। उनके कुछ कहने के पहले ही बे लोग बोले।’