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१६० :: तुलसी चौरा
 

'यह साक्षात् महालक्ष्मी लगती है। अभी जब यह श्लोक उच्चारण कर रही थी तो मुझे लगा सरस्वती देवी ही यहाँ आ गयी हैं। और हमें इनके खिलाफ कोर्ट में बयान देने को मजबूर किया जा रहा है।'

'अब ऐसा क्या कर दिया है मंदिर में। कौन करवा रहा है यह सब?'

'इसने क्या गलत किया। ऐसा तो सोचना ही पाप है। हमारे और आस्तिकों के तुलना में इन्होंने तो मन्दिर के नियम की पूरी रक्षा की है।'

'अब यही बात आप कोर्ट में आकर बताएँगे?'

'अब वहाँ क्या बताऊँगा, नहीं जानता। पर यह सच है। रोजी रोटी के लिये सीमावय्यर जैसा रटाएगा वैना तो कहना होगा।'

आप हमें गलत नहीं समझें। वे लोग हमें तंग कर रहे हैं। हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है।

'बड़े पुजारी दुखी हो रहे थे। शेष दोनों से कुछ सवाल किए और उनके उत्तर भी मिले। फिर बातचीत की दिशा बदल दी।

'हमने आप लोगों को इसलिए नहीं बुलवाया था। यह तीन ब्राह्मणों को वस्त्र धान करना चाहती थी।' वेणुकाका ने कमली को बुलबाया। उसने तीन थालों में―फल, पान, सुपारी और धोती, उत्तरीय का एक सेट उन्हें भेंट में दिया और उनको प्रणाम किया। उन लोगों ने उसे आशीर्वाद दिया। उनके जाने के बाद केसँट को चलाकर देखा। सारा संवाद दर्ज हो गया था। इसी तरह बाकी लोगों से भी बातचीत कर डाली।

XXX
 

सुनवाई का दिन आ ही गया। उस दिन कचहरी में भीड़ थी, अखबारों ने खूब विज्ञापित कर डाला था।

'प्रतिपक्ष के वकील ने सवाल किया, 'आपने कमली को अपने घर