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तुलसी चौरा :: १६९
 

मिथुन मूर्ति की घटना को वेणूकाका ने झूठा सिद्ध कर दिया। उनके अनुसार चप्पल वाली घटना और मिथुन मूर्ति की घटना एक ही दिन घटी है। तो चौकीदार और पुजारी के बयान के अनुसार तो वह अकेली थी। फिर भिथुन मूर्ति के साथ रवि कहाँ से आया। गवाह एक दूसरे को काट रहे हैं। फिर इन लोगों को मन्दिर में दर्शनार्थ गए सालों हो गये हैं, शायद तभी मिथुन मूर्ति की सही स्थिति वे नहीं बता पाये। दो बार पूछने पर दूसरी परिक्रमा के उत्तरी कोने में इसकी स्थिति पुजारी जी ने बतायी है, तो मैं आप लोगों की सूचना के लिए बता दूँ कि यह तीसरी परिक्रमा में है। इससे साफ जाहिर है कि मेरे मुवक्किल को अपमानित करने के लिए ऐसी घटना गढ़ी गयी है।'

वेणुकाका के इस तर्क को काटते हुए प्रतिपक्ष के वकील ने कहा, 'अब यहाँ मुद्दा यह नहीं है कि घटना किस जगह घटी। मुद्दा यह है कि उन दोनों ने मन्दिर को भ्रष्ट किया।'

वह आगे कुछ नहीं बोल सके। प्रतिपक्ष के वकील ने अंत में अपने ही गवाहों के आधार पर अपनी ही बात दोहराई और मन्दिर के शुद्धी- करण की माँग पर विचार करने का अनुरोध किया।

निर्णय की तिथि सप्ताह भर बाद के लिए स्थगित कर दी गयी।

पर प्रतिपक्ष के वकील का विचार था कि चूँकि मामला मन्दिर के शुद्धीकरण से संबंधित है, इसलिए इसे शीघ्र निपटाया जाना चाहिए। उनके अनुरोध पर तीसरे दिन निर्णय तिथि घोषित कर दी गयी।

अदालत की कार्यवाही स्थगित कर दी गयी।

वेणुकाका बाहर आये तो पुजारियों ने उन्हें घेर लिया। 'यह क्या कर दिया आपने हमने तो आन पर विश्वास करके ही बात की थी। उसे आपने रिकार्ड कर लिया और हमें बेइज्जत कर दिया।' कैलाश नाथ पुजारी ने दीन आवाज में पूछा।