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१७२ :: तुलसी चौरा
 


बिठाते। दो साल पहले, तुम्हारे गाँव के सीमावय्यर ने मठ का रुपया मबन कर लिया था, तब उनके पास क्षमा याचना करने गया था। तो उन्होंने सिर्फ हाथ हिलाकर जाने का संकेत कर दिया था। और वही आचार्य जी इनके प्रति इतना स्नेह दिखाये। कुछ खासियत जरूर है इनमें।' 'हाँ' हमसे भी कहते रहे लोग, पर हम ही नहीं माने। हमने तो सोचा ये ही सब मनगढ़न्त सुना रहे हैं कि हमारा मन बदल जाए। मठ के मैनेजर का पत्र भी पढ़कर सुनाने को कहा, वह भी जिसने नहीं सुना।'

'झूठ नहीं कहा होगा। अरे, हमारे गाँव के लोग तो तारीफ पै तारीफ किए जा रहे हैं। झूठी बात होती तो इतनी तारीफ कैसे होती।'

कामाक्षी सोच में पड़ गयीं। आगे क्या कहे, उसकी समझ में नहीं आया। कमली और रवि की शादी की बात क्या मौसी जानती है? या फिर सिर्फ टोह लेना चाहती है? मौसी ने वही पुराना सवाल दोहराया, 'क्यों री जवाब नहीं दे रही। कहाँ गयी वह फिरंगिन?'

'कहीं नहीं गयी है मौसी। वेणुकाका के घर ठहरी है। उनकी बिटिया बसँती उसकी अच्छी सहेली है। वह भी बम्बई से आयीं हुई है। जो भी हो, यहाँ तो पिंड छूटा।' कामाक्षी ने बातचीत को खत्म करना चाहा। पर मौसी को तो नहीं टाल सकी।

दो दिन बाद मीनाक्षी दादी ने पूछ लिया, 'क्यों री, तूने मुझे बताया ही नहीं। सुना है कोर्ट में केस चल रहा है। सारा गाँव कह रहा है। तुम्हारे मरद ने, तुम्हारे बेटे ने भी गवाही दी है।' मौसी उस वक्त सामने थी, कमली की बात फिर आ गयी। कामाक्षी ने ही पूछा, 'कैसा केस दादी! हमें तो मालूम नहीं। हमें कौन आकर बताता है।'

पता नहीं लोग बता रहे थे कि उसके मन्दिर प्रवेश से मन्दिर भ्रष्ट हो गये हैं, इसलिए उसे पवित्र करना था। सुना है, चप्पल पहने ही