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१७४ :: तुलसी चौरा
 

ब्याह में जैसा करवाया था वैसा ही अब भी करवाया है।'

'मौसी ने बीच में ही रोक दिया।'

'क्यों कामू? कैसी शादी! किसकी शादी।'

पहले तो कामाक्षी हिचकी। फिर एक-एक कर सारी बातें बता डाली यह भी बता दिया कि हम ब्याह की वजह से दोनों में बोलचाल बन्द है।

'घोर कलयुग आ गया है तभी न ऐसा हो रहा है।' मौसी ने कहा।

कामाक्षी चुप रही।

'तेरा बेटा रवि तो पगला गया है, पर तुम्हारे आदमी की मति भ्रष्ट हो गयी है क्या?'

'छोड़िए भी। अब क्या कहें, मौसी! हमारी बात सुनने वाला कौन है?'

कामाक्षी की आवाज भीग गयी। बोल नहीं पायी आँखें पनिया गयीं।

'हे भगवान व्याकरपा शिरोमणि रचुस्वामी शर्मा के खानदान में यह भी लिखा था।'

कामाक्षी ने करवट लेकर मुँह छिपा लिया। आँखें बरसने लगीं रवि के ब्याह के लिए जो-जो सपने वर्षों से देखे थे सब चकनाचूर हो गये।

'कुछ लोगी। कब तक भूखे पेट रहोगी।'

'कुछ नहीं चाहिए मौसी। भूख ही नहीं लगती। पेट ठीक नहीं है। थोड़ी देर आँखें मूँद लेती हूँ। थकान सी लग रही है।'

उनके बार्तालाप को वे एक अन्त देना चाहतीं थीं।

XXX
 

अगले दिन केस का निर्णय होना था। पहले दिन शर्मा और वेणुकाका अपने मित्रों को निमंत्रण-पत्र बाँट रहे थे। वे लोग न केस