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तुलसी चौरा :: १७५
 


के बारे में सोच रहे थे, न निर्णय के बारे में चिंतित थे। मद्रास से एक पत्रिका के सम्पादक इस विवाह का आँखों देखा हाल लेना चाहते थे उसके लिए अनुमति भी ली थी। वेणुकाका ने उन्हें अनुमति ही नहीं दी, बल्कि उन्हें एक निमंत्रण-पत्र भी भिजवा दिया। समाचार पत्रों में दक्षिण भारतीय ब्राह्मण और फ्रेंच करोड़पति की बेटी के इस विचित्र विवाह की सबर छप गयी थी।

शर्मा जब इरैमुडिमणि को निमंत्रण देने के लिए गए, उस समय वह अपने संगठन का समाचार पत्र पढ़ रहे थे। उसकी एक ही प्रति शंकरमगलम में आती। आमतौर पर यह पत्र स्टाल में नहीं मिलता। इस विवाह के बारे में एक खबर उसमें भी थी। इरैमुडिमणि ने हँसते हुए शर्मा को अखबार पढ़ाया।

'एक ओर कोर्ट में सीमावय्यर और मेरा केस चल रहा है। मलर- कोडी वाली घटना याद है न वही। सीमावय्यर की दिली इच्छा है कि मैं और मेरे साथी जेल चले जाएँ। जेल नहीं गए तो जरूर हाजिर होंगे।'

'तुम यार, जेल-वेल कहाँ जाओगे। आ जाना शादी में। शर्मा लौट गए।' अगले दिन कोर्ट में काफी भीड़ थी। बसंती, कमली, रवि, शर्मा, वेणुकाका, इरैमुडिमणि―सब आए थे। सीमावय्यर और उनके मित्र भी थे। पत्रकारों की भीड़ भी थी। लोग निर्णय की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे।

न्यायाधीश अपनी जगह पर भाकर बैठ गए, कोर्ट में निस्तब्धता छा गयी। कई पृष्ठों में लिखे गए निर्णय को पढ़ना शुरू किया। पहले कुंछ पृष्ठों में हिन्दु धर्म की स्थितियाँ, आचार-विचार, धर्म परिवर्तन के आधिकारिक रिवाज के न होने की कमी आदि पर टिप्यणी की गयी थी।

'हिन्दू धर्म से जुड़े लोग इसका प्रचार प्रसार करें या उसमें सहायक हों, ऐसी घटनाएँ कई बार देखने को मिलती हैं। स्वार्थी और ईर्ष्यालु