पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तुलसी चौरा :: १७७
 

अब सीमावय्यर दूसरी शरारतों में लग गए। हलवाई, पंडित आदि को विवाह में सम्मिलित होने से रोक देना चाहते थे।

'देखो जंबूनाथ पंडित, वेणुकाका के रुपयों के लालच में शास्त्र द्वारा निषिद्ध विवाह करा दोगे क्या? तुम करवाओगे, और तुम्हें रुपये भी मिल जाएँगे। चलो मान लिया, पर सोच लो कल फिर गाँव वाले तुम्हें अपने घर के कामों में बुलवायेंगे?'

पुरोहित जी घबड़ा गये। काशी यात्रा का बहाना बनाकर वहाँ से गायद हो गये।

वेणुकाका ने छेड़ा, 'शादी में काशी यात्रा का विधान हैं। पर यह शख्स खुद चला गया यात्रा में।'

उन्होंने तुरन्त दूसरे शहरी पुरोहित को बुलवा लिया।

पर हलवाई को सीमावय्यर रोक नहीं पाये?

'हलवाई शंकर अय्यर बोले 'हम तो नौकरों को रखे इसी आय में जीते हैं, कि कब यहाँ शादी का मुहूर्त आए। अब तुम्हारे लिये हम अपना धन्धा चौपट कर लें, यह नहीं होगा। चार दिन का ब्याह है। काम भी अधिक है, कोई किसी से ब्याह करे, तुम्हें क्या? चुपचाप घर पर पड़े रहो।' हलवाई ने मना कर दिया। सीमावय्यर कुछ नहीं कह पाये।

पुरोहित जंबूनाथ शास्त्री के गाँव से भाग निकलने की बात इरै- मुडिमणि ने जब शर्मा से सुनी तो बोले, 'ऐसे पुरोहितों के कारण ही तो शास्त्र सम्मत विवाह हमारे संगठन वाले नहीं करते। बस रजिस्टर्ड विवाह करवा देते हैं हम, वे हँस पड़े। शर्मा भी चुप नहीं रहे। बोले, 'तो वह भी क्या आसान है? अब तो एक के दस पुरोहित हो गये। तुम्हारे संगठन वाले, मंत्री, जाने किस-किस को बुलवाते हैं। जिस दल की सरकार है, उस दल के किसी कार्यकर्ता का विवाह हो, तो मंत्री ही पुरोहित बन बैठता है।'

'तुम भी यार, 'अपनी ही कहोगे। और मैं अपनी जिद पर अड़ा