फ्रैंच रिवेरों में उसके पिता के कई होटल हैं। लाखों के वाइन यार्ड हैं। अपने शंकरमंगलम जैसे दस शंकरमंगलम वे खड़े-खड़े खरीद डालें।’
शर्मा जी चुप लगा गए, समझ में नहीं आया क्या कहें।
‘कुछ देर के मौन के बाद फिर बोले, तुम्हारा भाई भी तो वहीं है न। उसे लिखकर देंखे? क्या कुछ हो सकेगा?’
आखिर आप चाहते क्या हैं, काका?
‘सोच रहा था कि उनके रवाना होने के पहले ही सुरेश उन लोगों से मिल लेता। तुम ही बताओ बिटिया? यह कैसे संभव हो सकता है?’ ‘मेरी तो समझ में ही नहीं आता काका कि मैं आपको क्या जवाब दूँ। इस समस्या पर उनका दृष्टिकोण बिल्कुल दूसरा होता है। जो लोग यहाँ से जाकर वहाँ बस गये हैं, उनमें भी यही उदारता, पर्सिसिवनेस आ ही जाती है। अगर सुरेश को इसके बारे में बता भी दिया जाए तो वह तुरन्त कहेगा, ‘यह तो अच्छी बात है। रवि बहुत भाग्यशाली है?’ ऐसा है काका कि इस समस्या को आप जिस दृष्टि से देख रहे हैं, वह उनकी समझ से परे है। अगर वे समझ भी लें, तो उनकी दुनिया की मान्यताएँ अलग हैं, काका!
‘पर बिटिया, लोगबाग क्या कहेंगे? थूकेंगे नहीं हम पर कि शंकर- मंगलम व्याकरण शिरोमाणि कुप्पुस्वामी शर्मा का पोता फिरंगिन को भगा लाया। हमारे संस्कार, हमारी परम्परा सब कुछ कैसे छूटे, बिटिया? कल हमें कुछ हो जाए, तो क्रिया कर्म भी तो उसी को तो करना है ना!’
इलने में ही बेणु काका भीतर आ गए।’ अरे! शर्मा जी आइए!’ शर्मा जी ने सविस्तार सारी बातें फिर से बताई। पत्र भी पढ़वा दिया। वेणु काका हँस दिये। बोले, वाह पठ्ठा बया खूब याद दिला रहा है, गंधर्व विवाह की।’
शर्मा जी ने सहमते हुए सुरेश के माध्यम से अपने बेटे का मन