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१८२ :: तुलसी चौरा
 


लगी थी तब भी कमली को कोसा गया था। जैसे ही उसे लगा कामाक्षी आने की स्थिति में नहीं हैं, वह अधिक देर तक नहीं रुकी। गाँव की परंपरा के अनुसार घर-घर जाकर लोगों को बुलावा दिया।' वह समझ नहीं पायी कि कामाक्षी का रवि और कमली के प्रति क्रोध और बढ़ गया है, अथवा वह बीमारी के कारण शांत है। फिर भी वह सोचकर गयी थी कि कामाक्षी उसे गालियाँ देगी, पर उसके विपरीत कामाक्षी एकदम शांत रही। बसंती के लिए यह सुखद आश्चर्य था।

कमली की इच्छा थी कि कोई भी मन्त्र नहीं छूटे। पुरोहित को आश्चर्य हुआ कहाँ अपने यहाँ की लड़के-लड़कियाँ जल्दबाजी मचाते हैं। कहाँ एक विदेशी युवती एक-एक मन्त्र पर जोर दे रही है।

कुछ जिद्दी और ईर्ष्यालु लोगों को छोड़कर पूरा गाँव उमड़ पड़ा था। भीड़ काफी थी। इरैमुडिमणि भी आए थे। कई व्यापारी, उद्योगपति भी आए थे।

'तुम तो साक्षात् हनुमान हो गए नायडू। हनुमान रातोंरात संजीवनी पर्वत उठा लाए और तुमने रातोंरात में सारा पंडाल फिर बनवा डाला।' नायडू की तारीफ करते हुए वेणुकाका ने कहा। जहाँ तक महिलाओं का सवाल नहीं गाँव के ब्राह्मण घरों की महिलाएँ तो नहीं दिखीं पर कुछ प्रगतिशील―महिलाएँ वेणुकाका के कुछ दूर की रिश्तेदार महिलाएँ सहज भाव से आयी थीं।

पाणिग्रहण, सप्तपदी, अरुन्धती दर्श आदि अनुष्ठानों के बारे में कमली ने पढ़ रखा था या सुन रखा था। पर यहाँ एक-एक निजी अनुष्ठान को उसने मन ही मन सराहा।

'सात पग मेरे साथ चलने के बाद तुम मेरी सखि बन गयी हो। हम दोनों अब अंतरंग सखा हो गये हैं। तुम्हारे साथ के इस बन्धन से अब मैं कभी भी मुक्त नहीं होऊँगा मेरे स्नेह बन्धन से मुक्त नहीं होगी। हम दोनों एक हो जाएँगे।

अब हम दोनों संकल्प लेकर कार्य करेंगे। एकमत होकर एक दूसरे