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तुलसी चौरा :: १८९
 


होगा। वर वधू को वह अपने बिस्तर तक ले गयी। वेणुकाका इसी अवसर की तलाश में थे जैसे, अक्षत की कटोरी रवि को पकड़ा दी बोले, 'अम्मा से आशीर्वाद ले लो।'

रवि ने अक्षत माँ के हाथ देकर उन्हें प्रणाम किया।

'दीर्घायुष्मान भव' कामाक्षी का स्वर शांत था।

दूध में केला और चीनी मिलाकर बोली, 'विवाह में दूध-केला देना शास्त्र सम्मत है। मैं तो वहाँ आ नहीं पायी, तुम दोनों पहले इसे ले लो……।'

रवि और कमली के हाथ से चम्मच में दूध केले का मिश्रण दिया। उनका स्नेह, वह आत्मीयता रवि और कमली को ही नहीं सभी को भिगो गयी।

'सहसा कामाक्षी का सिर चकराया और लड़खड़ने लगी! रवि ने लपक कर उसे थाम लिया'

'तुम उस पर जाकर बैठ जाओ। मैं बहू से दो बातें कर लूँ।'

रवि पीछे रह गया। कमली को इशारे से अपने पास बुलाया। उनका चेहरा एकदम निष्कलंक लग रहा था।

कामाक्षी की हालत देखकर कमली ने उन्हें सहारा दिया और बिस्तर पर बैठा दिया, 'आप बैठ जाइये, बहुत कमजोर हो गयीं हैं आप……।' और उनके पास सिर झुकाकर खड़ी हो गयी, कामाक्षी ने उसे आँख भर कर देखा दुल्हन रूप में कमली की खूबसूरती देखकर उनका जी जुड़ा गया। पारू को बुलवाकर गुँथे हुए फूल मँगवाए। अपने हाथों से कमली के बालों में लगाया।

'खड़ी क्यों हो। यही मेरे पास बैठ जाओ।' कमली वहीं खाट के पास नीचे बैठ गयी।

'तुम बहुत चतुर हो। सब कुछ तुम्हारी इच्छा के अनुसार हुआ है। इस वक्त मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। पर कभी यह भी सोचा है मेरा मन इस समय भरा हुआ है! तुम दोनों सुखी रहोगें,