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१९२ :: तुलसी चौरा
 


लपकी। कामाक्षी बेहोश सी पड़ी थी।

'शर्मा कामाक्षी के तलुओं की मालिश कर रहे थे।'

रवि मां की नाड़ी देख रहा था। वेणुकाका ने कुमार को दौड़ाया।

'डाटर को बुलवा लाओ, कार बाहर खड़ी है। तुम्हारी अम्मा को अंग्रेजो डाक्टर पसन्द नहीं है। पर इस समय तो वही काम आयेगा। जाओ―भागो―'

कुमार दौड़ गया। पार्वती डर के मारे रोने लगी। शर्मा ने वेणुकाका और रवि को देखा और होंठ बिचका दिए। सीधे पूजा घर गये और गंगाजल लाकर कामाक्षी के मुँह में डाल दिया। जल होठों के कोर से बह गया।

अब तक शर्मा किसी तरह शांत बने रहे थे फूट-फूट कर रो पड़ें।

'भाग्यशाली हैं शुक्रवार के दिन सुहागिन ही चढ़ रही है...।'

पुरोहित बुदबुदाए। रवि की आँखें लाल हो गयीं। कमली, बसंती भी फूट-फूट कर रो दीं।

तुलसी चौरे पर दीपशिखा शांत प्रकाश फैला रही थी। गृह लक्ष्मी के आते ही, कामाक्षी ने बिदा ली। बसन्ती ने धीमे से कमली के कान में कहा? 'लगता है जैसे काकी। आशीर्वाद देने भर के लिए रुकी थीं।'

कमली फूट पड़ी।

'रो नहीं कमली। उन्हें तो हमेशा यही भय लगा रहता था कि तुम रवि को अपने साथ विदेश ले जाओंगी। तुमसे कुछ कहा क्या?'

'न, उन्होंने बता दिया कि मैं यहीं रहूँ, और तुलसी पूजन करती रहूँ। यह आश्वासन लेकर ही मुझे यह दीपक सौंपा है।'

'और नहीं तो क्या तुम उनके दिए आश्वासन की रक्षा करना तुलसी को सूखने मत देना।'

शंकरमंगलम में सुबह अब सरकने लगी थी। सूर्य की किरणें मन्दिर