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तुलसी चौरा :: १९३
 


कलश पर चमक उठीं।

अंतिम बात
 

अब तक इस उपन्यास को सुरुचि पूर्वक पढ़ने वाले पाठकों के लिए यह अंतिम बात कहना चाहूँगा। पूर्व की संस्कृति पश्चिम के लोग और पश्चिम की संस्कृति पूर्व के लोग अपना रहे हैं, परस्पर विनिमय भी करते हैं दुनिया की सीमाएँ सिमट रही हैं। लोगों के बीच वैर-वैमनस्य और नफरत अब कम होने लगी है। आस्तिक सीमावय्यर की तुलना में नास्तिक इरैमुडिमणि अधिक सभ्य और मानववादी हैं। कमली को भारतीयता से मोह है कामाक्षी की हठधर्मिता को उसकी सहज निष्ठा ने चूर-चूर कर दिया।

विपरीत सिद्धान्तों वाले शर्मा और इरैमुडिमणि पारस्परिक स्नेह भाव से मित्रवत बने रह सकते हैं।

'हमारे चारों ओर विश्व में 'ट्रांसफर ऑफ वैल्यूज (मूल्यों का अंतरण, लगातार चल रहा है। धर्म और दर्शन सम्बन्धी विश्वासों और सांस्कृतिक रीति रिवाजों को यह अंतरण किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। पर वह भी सच है कि एक धारा दूसरे को भिगोती चल रही है। इस तरह के सांस्कृतिक आदान प्रदान, या सांस्कृतिक परिवर्तन भी हो रहे हैं इसे कोई नहीं रोक सकता। कमली और रवि भी सांस्कृतिक आदान प्रदान के प्रतीक हैं। हजार भेद- भावों के बावजूद, उन्हें भूलकर स्नेह को बनाये रखना भारतीय मातृत्व की खास पहचान है।'

संस्कृति का तात्पर्य अब राष्ट्रीय पहचान ही नहीं बल्कि मानवता के रूप में 'अंतर्राष्ट्रीय पहचान है।' कहानी की कथाभूमि शंकरमंगलम जैसे छोटे गाँव की है, पर इसमें आने वाले पात्र ऐसे हैं जो गाँव को ही नहीं विश्व को प्रभावित करते हैं, 'प्रभावित कर चुके हैं और करने नाले पात्र हैं।'

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