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तुलसी चौरा :: २१
 


और रवि दोनों ही थे।

'यह फूल कौन सा है। बिटिया? इतना बड़ा और इतना सुन्दर.....'

'इसे टुलिप कहते हैं। हालैंड में बहुत होते हैं काकू। वहाँ तो इसके फूलने के मौसम में टुलिप उत्सव ही मनता है।'

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'यह क्या है? कोई खंडहर लगता है। महल का चित्र है क्या?'

'अग्रो-पोलिस है। ग्रीस की राजधानी एवेन्स में यह मशहूर स्थल है।'

'मतलब यह हुआ कि दोनों पूरा यूरोप घूम आये।'

'अकेले ही तो घूमे होंगे वहाँ? क्यों?'

वेणु काका और बसंती समझ नहीं पा रहे थे कि पंडित जी का यह प्रश्न सहजता से भरा था या के कुछ उगलवाने की चालाकी पर उतर आये थे।

एक सधे हुए नाविक की तरह उन्हें बातचीत की नाव आगे धीमे धीमे खेनी पड़ी। शर्मा जी के गुस्से का झंझावात कभी भी उठ सकता था। पंडित शर्मा जी, फिर कहीं उठ कर न निकल पड़ें, इसकी पूरी सतर्कता बरती जा रही थी।

आशा के विपरीत रवि की बातचीत पंडित जी ने स्वयं छोड़ दी थी, पर क्या पता बातचीत का रुख किस ओर निकल जाए। यह खटका उन्हें लगातार बना रहा। यही वजह थी कि कुछ प्रश्नों से वे कतरा रहे थे। पर उन्हें लगा, वे बच नहीं सकते, पंडित जी बातचीत के इसी ओर आगे बढ़ाना चाहते हैं।

उन्हें देखकर बोले, 'चलो, यह मूर्खता कर बैठा, मान लिया।

पर उसका परिवार? उसके घरवाले नहीं मना करते? आप ही तो कह रहे थे कि उसका बाप करोड़पति है ...।'

'काका, वहाँ के लोग रोकने का अधिकार नहीं रखते। पढ़े लिखे