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संस्कृति व्यापक संदर्भो में देशकाल की
पहचान में अखिल सार्वभौमिक मानवता से
जुड़ती है।
इस उपन्यास की कथाभूमि शंकर
मंगलम् जैसे तमिलनाडु के छोटे से गाँव
की है पर इसके पात्र ऐसे हैं जो गांव को
ही नहीं विश्व को प्रभावित करते हैं।
दुनिया के लिए केवल इस बात का
महत्व है कि इस सुन्दर दक्षिण भारतीय
गांव में विश्वेश्वर शर्मा के घर तुलसी चौरे
पर दीया लगातार प्रज्ज्वलित होता रहेगा
पर गांव के लिए केवल यह महत्वपूर्ण है
कि दीये को प्रज्ज्वलित करने वाले हाथ
किसके हैं। पूर्ण ज्ञानी और इच्छा द्वेष से
रहित बुद्धिजीवी विश्व को रंग, वर्ग, जाति,
भाषा खेमों में नहीं बांटते। उनकी सम
दृष्टि यदि सभी को मिल जाए तो विश्व
में शांति की प्रतिष्ठा में देर नहीं। यदि
इस उपन्यास के माध्यम से लोगों में यह
समदृष्टि पैदा हो सके तो यह उपन्यास की
सफलता होगी।
ना० पार्थ सारथी
मूल्य : पचास रुपया