मन ही मन बैठक की लम्बाई चौड़ाई आंकने लगे।
उनकी पत्नी कामाक्षी चौके में थी। रवि को पूरा अधिकार है कि वह सटे स्नान घर वाला कमरा बनवा ले। पिछले कुछ वर्षों में प्रतिमाह वह जो रुपये भेजता रहा है, वह बैंक में यूँ ही पड़ा है। ब्याज समेत अब रकम खासी मोटी हो गयी थी। फिर भी उसने अपने पत्र में किसी सुविधा की माँग नहीं की थी। एक बारगी संदेह भी हुआ, कहीं ऐसा तो नहीं कि साहबजावे का इरादा स्वयं वेणु काका के यहाँ ठहरने का हो। खैर, कुछ भी हो। अब उसका आना टाला नहीं जा सकता।
अब तक इस समस्या की चर्चा जिनसे भी की है, वे सभी रवि के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहे हैं। रवि के अलग कमरे और स्नानघर की व्यवस्था वे खुद ही क्यों न कर डालें। रवि नहीं लिखता है, तो न सही। उन्हें तो करना चाहिये। वे तो किसी तरह मन को मना लेंगे पर यह औरत! यह क्या करेगी? उसे कैसे समझायेंगे वे? रवि के शंकरमंगलम पहुँचने के पहले यह खबर उसे देना आवश्यक है। अभी कुछ कहेंगे, तो यह मीनाक्षी दादी से कह देगी फिर सारे गाँव में बात फैलते देर नहीं लगेगी।
काफी देर सोचने के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि रवि के आने के पहले उन्हें कुछ तैयारियाँ करनी होंगी। इस मकान के दो प्रवेश द्वार हैं। बगल में एक द्वार है, जो मवेशियों के आने-जाने के काम आता है। वहीं हौदी भी है। दस-बारह नारियल के पेड़, चार-पाँच आम, कटहल के पेड़ और फूलदार पौधों समेत एक बड़ा सा कुआँ भी वहीं है। नौकर-चाकर इसी रास्ते का उपयोग करते थे, चाहे बाग में आना हो या मवेशियों को ले जाना हो। इसी द्वार के पास सीढ़ियाँ ऊपर से उतरती थीं। ऊपरी तल्ले पर लकड़ी का एक पार्टीशन डलवा देंगे। एक पंखा भी लग जाएगा। बगल वाले कमरे में कुछ कुर्सियाँ, डयनिंग टेबल भी पड़ जायेगा। शर्मा जी ने निर्णय ले लिया था। लाख भीतरी