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तुलसी चौरा :: ४३
 


खूबसूरत लग रही थी। शर्मा जी को वह चित्र बहुत पसन्द आया। उन्हें बगा, कामाक्षी को अब साफ-साफ सब कुछ बताने का अवसर आ गया है।

बिना किसी भूमिका में पन लिए उसके पास पहुँचे और पत्र पढ़ता शुरू किया। पढ़ने के बाद कामाक्षी के हाथ लिफाफा भी थमा दिया। बे चाहते थे, कि कामाक्षी उस चित्र को देखे। उन्हें लगा, वह भावुक हो उठेगी। पर इसके विपरीत वह शान्त रहीं।

'क्यों जी, लगता है, वह अकेला नहीं आ रहा है। कोई और भी साथ आ रहा है क्या?'

'हाँ, तुम्हें जो चित्र दिया है, उसे देखा नहीं तुमने?'

'न पत्र आपने पढ़ाया था। चित्र कहाँ है?'

शर्मा जी ने लिफाफा उसके हाथ से लिया और चित्र निकालकर दिखाया।

'यह लड़की कौन है?'

'लिखा है न उसने। कमली है।'

'यह कौन है?'

'सुन्दर है न?'

'लड़की जवान हो, और रंग साफ हो तो खूबसूरत लगती ही है। पर यह है कौन? साड़ी तो पहनी है, पर नाक नक्श तो हमारे यहाँ के नहीं लगते?'

'रवि की दोस्त है। फ्रांसिसी लड़की है।'

'तो क्या उसके साथ बही आ रही है?'

'हाँ'

'तो हमारा देश देखने आ रही है।'

'हाँ, लगता तो कुछ ऐसा ही है।'

कामाक्षी ने आगे कुछ नहीं पूछा। पत्र उन्हें पकड़ाकर चली गयी। शर्मा जी को यह पत्र छिपाने की आवश्यकता नहीं रही। आले