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तुलसी चौरा :: ४९
 


आवाज सुनकर अड़ोस-पड़ोस के लोग बाहर निकल आये। कामाक्षी ओसारे के खम्भे के सहारे खड़ी हुई थी।

कार से उतरे रवि और कमली को देखकर बसन्ती शरारत से मुस्कुराई और बोली, 'तुम दोनों इस रंगोली के ऊपर खड़े हो जाओ, पूरब की ओर मुँह करके। आरती उतार देती हूँ।' शर्मा जी कार से उतर गए थे।

बसन्ती की इच्छानुसार ही रवि कमली का हाथ पकड़कर रंगोली के ऊपर आकर खड़ा हो गया। बसन्ती और पार्वती ने मिलकर आरती उतारी।

'मंगलम मंगलम जय मंगलम
श्री रामचन्द्र की शुभ जय हो,
महिलाओं की मंगल आरती,
कन्याओं की कपूर आरती
सोने की थाल में, पंचरंगी रंगोली,
मोती के थाल में नवरत्नों की आरती,
सीतापति की शुभ जय हो'

बसन्ती का गला इतना मधुर है, कमली को पहली बार पता लगा। सुबह के सन्नाटे को चीरते पक्षियों के कलरव के बीच यह मधुर गीत बेहद सुखद लगा। कमली ने रंगोली और गीत दोनों की तारीफ की।

किनारे खड़ी माँ के पास रवि कमली को ले गया, और उसका परिचय करवाया। कमली ने झुककर उनके पैर भी छू लिए। कामाक्षी सकुचाकर कुछ पीछे हो गई। यह सकुचाहट थी या गुस्सा कोई भांप नहीं पाया।

'ऊपर ले जाओ उसे। वहाँ तुम लोगों के ठहरने की पूरी व्यवस्था है।' शर्मा जी ने रवि से कहा।

'व्यवस्था कैसी, बाऊ? यहीं रह लेंगे। कमली के लिए किसी