पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२ :: तुलसी चौरा
 


भी नहीं की। तुम उस लड़की को उसके पास ले गए थे ना, तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही?' 'अम्मा बिल्कुल सामान्य नहीं हैं, बाऊ। कमली ने पैर छुए, तो मुँह बनाए खड़ी रहीं। मैंने सोचा घर के बाहर कोई विवाद खड़ा करना ठीक नहीं।

'यह रंगोली वगैरह भी पारू और बसंती ने ही मिलकर बनायी है। कामू को यह सब रास नहीं आया होगा। तुम्हारे विवाह के लिये जाने क्या-क्या कल्पनाएँ लिये बैठी थी। पूरी गली में शामियाना लगाकर बिल्कुल पारम्परिक ढंग से विवाह रचाना चाहती थी।'

'तो मना कौन कर रहा है? हमारी परम्पराओं को मैं जितना प्यार करता हूँ, कमली भी उतनी ही रुचि रखती है। तो ठीक है, चार दिन का विवाह ही सही…।'

'तुम भी बेटे। मैं क्या कह रहा हूँ, और तुम अपनी ही कहे जा रहे हो, कामू को घरेलू, गाँव की लड़की चाहिए।'

अखबार वाला अखबार डाल गया। रवि ने पिता को अखबार पकड़ाते हुए कहा, 'आप तब तक अखबार देखिए, बाऊजी। मैं अम्मा से बातें करके देख लेता हूँ।'

रवि भी माँ से मिलने कतरा रहा था। अम्मा चौके में थीं। उनकी आवाज पिछवाड़े से आ रही थी। वसंती अम्मा की किसी बात का उत्तर दे रही थी, शायद।

रवि पिछवाड़े की ओर तेजी से लपका। अम्मा सामने से चली आ रही थी। उसे देखकर भी अनदेखा करती चौके में चली गयी। वसंती और अम्मा के बीच क्या बातें हुई होंगी, यह जानने की उत्सुकता उसमें थी। वह पहले कुँए के पास गया। तुलसी चौरे के पास खड़ी बसंती कमली को कुछ समझा रही थी। कमली ध्यान से सुन रही थी। पार्वती भी उनके पास खड़ी थी। 'अम्मा क्या कह रही थी?' रवि ने पूछा।

'कुछ नहीं रवि, अम्मा ने अभी-अभी पूजन खत्म किया है। हम