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तुलसी चौरा :: ५९
 


उसे कमली इस रूप में बेहद खूबसूरत लग रही थी। इतनी कि मन हुआ उसे अपने सीने से लगा ले। पर चुप ही रहा।

अम्मा भी उसे बहुत प्यार करती हैं। कमली तो जान भी दे सकती है। पर वह कतई नहीं चाहता कि अम्मा और कमली के बीच में हल्का सा मनमुटाव भी हो। कमली का मन तो फूल सा कोमल है। उसको सौजन्यता किसी भी समस्या को सुलझा सकेगी, इसका पूरा विश्वास उसे था। उसकी सारी चिंता अम्मा को लेकर थी। पुरुष दूधमुँहे उम्र से केवल एक ही स्त्री से प्यार करता है, यह होती है माँ। युवावस्था में वह प्रेम दूसरी युवती का हो जाता है। लिहाजा माँ के भीतर की ईर्ष्या उस नवागत युवती के लिए होती है। रवि को लगा, माँ के गुस्से का कारण कहीं यह स्वाभाविक ईर्ष्या तो नहीं? हालाँकि अभी तक आधिकारिक तौर पर भावी बहू के रूप में उसका परिचय नहीं करवाया गया है। अम्मा को संदेह है!

स्नान के बाद शुद्ध कपड़ों में ही भीतर प्रवेश की अनुमति है।

कालेज के दिनों में रवि अक्सर अम्मा को छेड़ा करता था, 'घर पर ही मंदिर प्रवेश संघर्ष समिति बनानी होगी, अम्मा।'

पता नहीं अम्मा कमली से क्या का कह दें। वह स्वयं भी कमली के लिये बाहर ही खड़ा रहा। कमली की तंगी बाहों को अम्मा और बाऊ दोनों ने ही घूर कर देखा। अम्मा ने तो मुँह भी बिचका दिया। अच्छा हुआ कमली पारू से बातों में लगी थी, ध्यान नहीं दिया।

पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद लेकर बाहर बैठक में गए, बसँती लौट आयी थी। बाऊ जी ने ही पहल की थी। 'खाना ऊपर भिजवा दूँ, या यहीं पत्तल बिछा दिया जाए?'

कमली सबके साथ पत्तल में खाते को तैयार थी। परोसने में कामाक्षी का हाथ बँटा कर, सबको खिलाने के बाद खाने की इच्छा थी। पर क्या अम्मा कमली को चौके में घुसने देंगी। रवि और बसंती दोनों ने ही इसमें फेर बदल कर दिया। बोली, 'काका और काकी