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६०:: तुलसी चौरा
 


नीचे खा लेंगे। तुम, कमली, पारू और कुमार ऊपर आराम से बतियाते हुए खाना। आज तो मैं भी यहीं खाऊँगी। बुजुर्गों को तंग करना ठीक नहीं। हम लोग ऊपर ही बैठ लेंगे। बसंती ने स्थिति को संभाल लिया था। शर्मा जी भांप गए। उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। 'ठीक ही तो कह रही है। ऐसा ही करो।' शर्मा जी कुछ और नहीं कह पाये। रवि कमली को लेकर ऊपर चला गया।

बसंती, कुमार और पार्वती चौके से खाना ऊपर ले जाने लगे। उनके ऊपर आने के पहले जो थोड़ा वक्त हाथ लगा था रवि ने कमली को दो तीन बातें बता दी। कुमार और पारू को अपने हाथ से घड़ी देने को कहा। अम्मा की परम्परावादिता, कट्टरपन को साफ शब्दों में न बताकर प्रकारान्तर से बोला, 'कुछ भी हो, उसे आराम से लेना। पुरातन पंथी गाँव है यह। लोग भी कट्टर और हठधर्मी हैं। यहाँ मैनर्स जैसी बातों की अपेक्षा नहीं की जा सकती।'

'आप जो मुझे यूं बताकर, अनुरोध सा कर रहे हैं, यही अटपटा लगता है, बस।' कमली हँस दी।

कमली ने परोसने में उत्साह दिखाया। दो पापड़ उसके हाथों से फूट गए, तो बसंती ने उसे बिठा दिया। 'तुम बैठ जाओ। आदत पड़ जाएगी, फिर यह काम करना।

खाने से निपट कर रवि थकान से चूर सोने चला गया।

कुमार और पार्वती को बुलाकर उनकी घड़ियाँ दे दीं। बसंती को सेंट की बोतल पकड़ाती बोली, 'बसंती, यदि रोज एक टोकरी भर चमेली के फूलों का वादा करो, तो ये तमाम इत्र सड़क पर फेंक दूं।'

चमेली को गूंथने की कला को देखकर कमली आश्चर्थ में पड़ गयी। गूंथने की तेजी देखकर बह हैरान रह गयी।

हम लोग जिन कामों के लिए मशीनों की मदद लेते हैं, भारतीय स्त्रियाँ उन्हें अपने कोमल हाथों से करती हैं। ऐसा लगता है, प्रत्येक स्त्री कलाओं की देवी रही होगी।