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६४ :: तुलसी चौरा
 

कुंकुम का टीका लगाए, कलश से स्तनों वाली है वह सखि री,

बहतीपमाली, शिव को जया चली पथ पर, सखि री।'

काकी अनायास ही अपनी री में गाती जा रही थी। लगा, खेल में ध्यान को केन्द्रित करने के लिये ये लोकगीत गढ़े गये है। कमली ने गीन को रिकार्ड में कद कर लिया मानाने कमरे से चित्र भी लिये। गांव का चौका, गाँव के लेज, आँचलिक गीत······।

'इन खेलों से जुड़े कई लोकगीत है, कमनी, यह गीत पार्वती पर लिखा गया है, बालासर में यह लोकगीतों का अंग बन गया और गाँव की जिंदगी में जुड़ गया। कुछ लोकगीतों में तो इतने खुले वर्णन मिलेंगे कि बस······।'

'हो सकता है, कि ऐसे असाधारण खेनों में ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए ही इन लोकगीतों को गढ़ा गया हो। कई बार जंगल के रास्ते अकं गुजरने वाला पधिक अपने को उत्साहित करने के लिए ही सही, कभी कुछ गुनगुनाता है, कभी सीटी बजाता है। अपने लिये एक काल्पनिक सहयात्री को परिकल्पना जैसा कुछ। लोकगीतों से संबंधित शोध में यही पाया गया है! आगीतों की मौखिक परम्परा है। यदि उनका अनगढ़पन वा कच्चापन का अश्लीलता निवाल दें, तो फिर ये मिट्टी से जुड़े गीत हो ही नहीं सकते।'

'पर यहां तो ऐसे भी स्वयं भू विद्वान हैं, जो इन्हें वैयाकरणिक शुद्धता प्रदान करने लगे हैं।'

'यह राजनीतिज्ञों द्वारा दी जाने वाली नयाँ उपसंरकृति है, बसंती। साधारण साधारण बातों को बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत करना और पान- विक रूप में अदाधारक बालों को खन्न होने देना । यह साजिश है।'

बसंती को लगा कि जिस बात की चर्चा के लिये ही दीन बार सौ गृपठों की जयधो में एक ही काश्य में कमली ने सफलता से कह डाला है। स्थानोत्तर भारत की इन एक कार ने संपूर्ण का परिभाषित कर दिया है। कमली ने एक-एक कर सभी बातें जान-