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तुलसी चौरा :: ७५
 


पर बैठकर अपनी गुरु गंभीर आवाज में शुरू कर देते थे 'रामः रामौ रामा। रामम् रामी रामान...राम के रूप को दोहराते वक्त, वह सुबह, वह सुगंध याद आने लगती। एक बार भी भूल कर देता, तो बाऊ को लगता वह सो गया है, कान उमेठ देते। दोनों का सम्मिलित स्वर गूँजता और शकरमंगलम में सुबह होती। निघंटु, शब्द―आदि समाप्त करने के बाद रघुवंश का अध्ययन याद आया। शंकरमंगलम में बिताया वह अनुशासन युक्त बाल्य काल, कुछ-कुछ स्वतंत्रता लिये हुए कालेज के दिन, फिर पैरिस की स्वच्छंद जिंदगी-कमली से प्यार, सब कुछ जैसे कितनी जल्दी में घट गए और अब पहाड़ की ओर यह यात्रा। उसे लगता है, उम्र चाहे जितनी हो जाये, पहाड़ की ओर चढ़ते हुए, या तेजी से अपनी ओर आती समुद्र की लहरों को झेलते हुए आदमी बिल्कुल बच्चों की तरह हो जाता है। इन दोनों ही स्थानों पर आदमी की उम्र सहसा कम हो जाती है। बुढ़ापा जाने कहाँ गायब हो जाता है। थकान, हिचकिचाहट सब गुम होने लगते हैं। पहाड़ पर चढ़ते हुए ऊपर चढ़ते जाने का उत्साह हावी होने लगता है।

कार जैसे ऊपर चढ़ती चली गई, हवा कानों के पास सनसनाती हुई निकलती रही। ठंडक बढ़ने लगी तो रवि ने खिड़की के दरवाजे बन्द कर दिए। कमली फूलमाला की तरह उस पर टिककर सो रही थी।

बाऊ के अनुशासन में बंधी बधाई जिंदगी जीते हुए आधी नींद में ही उठकर श्लोक रटते हुए उसने तो कल्पना तक नहीं की थी, कि वह कभी विदेश जायेगा, या किसी विदेशी युवती से प्यार करेगा। कुछ भी घटा है, वह सच है। प्रमाण है यह कमली। निश्शब्द संगीत की तरह आश्वस्त करने वाला यह सौदर्य आप्लावित करने वाला यह यह मधुर स्वभाव......।

चूँकि रात का वक्त था, और रास्ते में कई हेयरपिन वाले मोड़ पड़ते रहे, वे साढ़े ग्यारह के लगभग ही एस्टेट वाले बंगले तक