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७६ :: तुलसी चौरा
 


पहुँच जाए।'

एस्टेट में ठंड बढ़ गयी थी वेणु काका और बसंती नायडू के बंगले में ही ठहर गया। बंगले की कुछ ऊँचाई पर गेस्ट हाउस था। ऊपर जाने के लिए धुमावदार सड़क थी। नायडू ने उन्हें बंगले तक छोड़ दिया, जैसे वे दोनों हनीमून मनाने आए कोई नवविवाहिता जोड़े हों। बेडरूम में हीटर लगा था। नायडू सब दिखा बुझाकर चले गये। थोड़ी ही देर में नौकर थर्मस में गरम दूध और प्लेट में फल दे गया

कमली जग गयी थी। रवि उनके पास बैठ गया था। धीमे से पूछा, 'कमली, लगता है, दोपहर भर तुम सोई नहीं। क्या करती रही? तुम ऊपर तो थी नहीं। नीचे अम्मा से बातें करती रही थी क्या?'

कमली ने सारी बातें कह सुनाई।

'अम्मा का व्यवहार कैसा था? गुस्से में तो नहीं थी?'

'कह नहीं सकती। गुस्से में तो नहीं लग रही थीं। हाँ, सामान्य भी नहीं लग रही थीं।'

'तुम थोड़ा धैर्य रखो, और उसका मन जीत लो। अम्मा की पोढ़ी की जितनी भी हिन्दुस्तानी माँ हैं, उनका मन इतना ही जिद्दी होता है। वे इतनी जल्दी नहीं मानतीं।'

'मुझे लगता है, हमारे रिश्ते को लेकर माँ के मन में संदेह और भय भी। बसंती ने बताया था कि मेरा बिना बाहों वाला ब्लाउज पहनना अम्मा को अच्छा नहीं लगा। मैंने तुरन्त बदल डाला।'

'तुम्हारे कपड़े पहनने ओढ़ने को लेकर अगर माँ नाराज होने लगी हैं, तो मैं समझता हूँ, यह अच्छी शुरुआत है। यदि एक युवती के पहनने ओढ़ने, बैठने उठने को लेकर उसके प्रेमी की माँ यदि चितित होने लगे, तो समझ लो, वह अपने की भावी सास मानने लगी है।' कमली हँस पड़ी। रवि भी हँस दिया।