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तुलसी चौरा :: ७७
 

कमली कामाक्षी के स्वर की मधुरता, लोक कलाओं में उसकी प्रवीणता की प्रशंसा करती रही।' आप के यहाँ की स्त्रियाँ ललित कलाओं में कितनी पारंगत होती हैं? मुझे तो ईर्ष्या होने लगी है।'

'यदि एक ही स्त्री अपने से उम्र में वरिष्ठ दूसरी स्त्री से ईर्ष्या करने लगे तो समझो बहू होने की सम्पूर्ण योग्यता उसमें है।'

रवि काफी उत्साहित लग रहा था। कमली ने वेणुकाका के घर भोज में मिले कुछ लोगों के बारे में, उनकी बातों की चर्चा करने लगी।

'एक बात कहूँ कमली जो पुरुष स्त्रियों के सामने संकोच होने का प्रदर्शन करते हैं, उनसे अकेले में सतर्क रहना चाहिए। बहुत अधिक संकोची पुरुष और आवश्यकता पर थोड़ा सा भी संकोच न करने शली स्त्री दोनों ही विश्वसनीय नहीं होते। भोज में जिनसे तुम मिली हो उनमें अधिकांश विघटित व्यक्तित्व वाले हैं। तुम्हारे जैसे यूरोपीय 'कृष्ण कान्शन्सेन्स' "योग" "सेक्रेन्ड बुक्स ऑफ ईस्ट" को देख कर पूर्व के प्रति आकर्षित होते हैं। यहाँ के कुछ कुंठा ग्रस्त लोग पश्चिम को देखकर आकर्षित होते हैं। इसलिए होता यह है, कि अब तुम दोनों मिलते हो, तो जिज्ञासायें विपरीत दिशा की ओर प्रवृत्त होती हैं।

तुम नायडू से विशिष्टाद्वैत के बारे में पूछती हो और नायडू तुमसे 'मौलिन रोज', 'पलोर शो' के विषय में जानना चाहते हैं।"

'आप ठीक कह रहे हैं। पर नायडू या उसके जैसे लोग ही तो भारतीयों के प्रतिनिधि नहीं हैं। इसी भारत में ही तो शास्त्रों, महाकाव्यों के अध्येता तुम्हारे पिता और ललित कलाओं की ज्ञाता तुम्हारी माँ भी है न!

'तुम मेरे माता पिता की जरूरत ने ज्यादा प्रशंसा करने लगी हों, कमली!'