पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/८

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
दो शब्द
 

समय मेरे लिए शाश्वत न सही पर उसके प्रति आस्थावान मैं हमेशा रही हूँ। अपने काम और समय के विस्तार के बीच संगति बरकरार रखने की कोशिश करती रही हूँ। इसी विश्वास और आस्था के बल पर कभी-कभी काम समय की प्रतीक्षा के लिए सरकाली भी रहती हूँ! ‘तुलसी माडम’ के अनुवाद की योजना पिछले वर्ष से दिमाग में रही, और इसी प्रतीक्षा के लिए स्थगित होती रही। पर ना॰ पार्थसारथी को इस वर्ष के प्रारम्भ में हुई असामयिक एवं आकस्मिक निधन से मेरे इस विश्वास को गहरा आघात पहुँचा है। एक मोह भंग, एवं एक नयी समझ भी पैदा हुई, वह यह कि समय नश्वर है। मनुष्य का कार्य असीमित हैं। मेरे मित्र सतीश जायसवाल ने एक जगह लिखा है, “मनुष्य के संदर्भ में समय की अनश्वरता अमुक मनुष्य के जीवन काल तक ही सीमित होती है।”

सच है, अगर यह बोध पहले ही होता तो यह पुस्तक उनके जीवन काल में प्रकाशित हो चुकी होती। इस महोभंग से उपजे बोध का ही परिणाम है, यह पुस्तक। इसे मैं उनकी पुत्री के विवाह पर भेंट के रूप में उसके मेंहदी लगें हाथों में सौंप रही हूँ।