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८० :: तुलसी चौरा
 

'देखा जाए तो हमारे यहाँ की राजनीति और प्लांटेशन की स्थिति एक सी है। रोपाई, कटाई, निराई सबकी बातें दोनों मिलती जुलती हैं। राजनीति की बातें भी प्लांटेशन की ही भाषा में की जाती हैं। युवा आगे निकल आएँ तो कहते हैं, दो पसे भी नहीं फूटे, चला आया राजनीति में। चुनाव में जो जैसा खर्च करता है बाद में वैसी कंटाई भी करता है। असंतुष्ट और विरोधी कार्यकर्तानों की निराई की जाती है।

'अरे रे, आप तो इस पर पूरी थीसिस लिख डालेंगे, लगता है।' रवि हँस पड़ा।

'अरे यही नहीं। आगे भी सुन लीजिए! खेत में जैसे बीज पड़ जाता है और फसल उग भाती है, ठीक इसी तरह परिवार में एक राजनीतिज्ञ ऊँचे पद पर पहुँच जाए तो फिर उस परिवार में वह पद पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने लगता है।

'एलीफंट वैली' चलें?

वेणु काका ने बातों की दिशा बदली। कमली और बसंती ने कपड़े, बदल लिये थे। जीप से फिर चल दिए वे लोग।

'आपके घर से कोई साथ नहीं आया, नायडू?'

'है कौन यहाँ साथ लाने के लिये! बच्चे नीचे मैदान में पढ़ रहे हैं। पत्नी बीमार रहती है। गरम पानी में ही नहायेगी। ठंडा पानी उसे रास नहीं आता।' कोई बारह मील चलने के बाद एक मोड़ पर जीए रुक गयी। सौ डेढ़ सौ फीट नीचे हरी घाटी फैली थी। एक झील भी नजर आया। झील के किनारे काले-काले धब्बों की तरह कुछ हिल डुल रहे थे।

'वह देखिए,―हाथियों के झुंड…।'

दूरबीन कमली की ओर नायडू बढ़ाया।

कमली ने दूरबीन से देखा। दस बीस बड़े हाथी एकाध छोटें हाथी―झूमते खेलते साफ उसे नजर आए उसे छोड़ कर बाकी लोग