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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/८३

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तुलसी चौरा :: ८१
 


वहाँ कई बार आ चुके थे इसलिए उन्हें अधिक आश्चर्य नहीं हुआ। कमली ने हाथियों के बारे में कई सवाल किए। सभी प्रश्नों का उत्तर वेणुकाका और नायडू बारी-बारी से दिए जा रहे थे।

'एलीफेंट बैली' से लौटते कमली ने नायडू से वंदन का पेड़ देखने की इच्छा प्रकट की। कुछ दूर बाद जीप रुकवा कर नायडू ने कमली को चंदन का एक पुराना पेड़ दिखाया। वन विभाग के लोगों ने पेड़ की एक शाखा पर कुल्हाड़ी चलाई होगी, वहीं से भंध फूट रही थी। कमली ने सूंघ कर देखा। नायडू ने आश्वासन दिया कि दो तीन दिन में वे चंदन का एक टुकड़ा भिजवा देंगे।

लौटते में रवि और कमली पिछली सीट पर पास बैठे थे। पहाड़ी हवा की ठंडक और झरने के पानी के सुख ने उसके उत्साह को दूना कर दिया था। कमली के कानों के पास झुक कर बोला 'कमली मेरे लिये तो तुम ही चंदन का पेड़ हो। तुम्हारे शरीर में लो इतनी सुगंध है, वह चंदन के पेड़ में क्या होगी। मैं इसीलिये तो जीप से उतरा ही नहीं। चंदन का वृक्ष तो मेरे पास है ही……।'

कमली उसे देख कर मुस्कुरा दी। बंगले की ओर लौटते दूर क्षितिज में इन्द्र धनुष निकल आया था। पहाड़ की हरियाली हल्की बूँदा-बाँदी, जंगल की महक, इन्द्रधनुष, पूरे माहौल में बिल्कुल बच्चे हो गए थे वे। दोपहर में नायडू ने भोज का आयोजन किया था। भोजन समाप्त करके, कुछ देर आराम करने के बाद ही वे निकल सके।

'आप जब तक भारत में हैं, कभी भी यहाँ आकर ठहर सकते हैं। आपका अपना ही घर समझें।' रवि और कमली से नायडू बोले। हरी इलायची की एक माला, कमली को भेंट में दी। कमली उसकी बुना- बट को देख आश्चर्य में पड़ गयी।

'बीक एंड में कहीं निकलना हो, तो इससे बढ़िया जगह कोई नहीं हो सकती।' वेणु काका ने कहा।