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८६ :: तुलसी चौरा
 


है?'

'मुझे तो अपने इस कारिदे पर ही शक है। सीमावय्यर का खास आदमी है यह!'

'हो सकता है। किसी से पता लगा होगा। तभी तो, सीमावय्यर ने मियां को सीधे यहाँ भिववा दिया। यहाँ तो हम लोगों को एक एक पाई जोड़नी पड़ती है और एक यह अहमद अली है, चारों ओर से पँसा ही पैसा। समझ में नहीं आता होगा इन्हें कि कैसे खर्च किया जाए। शान में किराया पर खर्च किए चले जा रहे हैं।'

'पैसा केवल सुन या सुविधाएँ दे सकता है पर अनुशासन और ईमानदारी नहीं दे सकता। कितने लोग हैं, जिनके पास अथाह पैसा है, पर अनुशासनहीनता और बेईमानी की वजह से चैन से सो भी नहीं पाते हैं।'

'अच्छा है। हम इससे दूर ही रहें। ईमानदार होते हुए गरीब बने रहना ज्यादा अच्छा है। हमारे लिये तो यही काफी है।'

इरैमुडिमणि और शर्मा दोनों अच्छी तरह जानते थे कि सीमा- वय्यर और अहमद अली इस बात को यूं ही नहीं छोड़ेंगे।

शर्मा इरैमुडिमणि से बोले, 'लालच, राजनीतिक दाँँव पेंच, उठापटक, दूसरों को धोखा देकर पैसा कमाने की ये तमाम बुराइयाँ पहले शहरों तक ही सीमित थीं। अब हमारे गाँवों में भी आ गयी हैं। और तो और अब तो ये लोग दलीलें देने लगे हैं कि इस तरह कमाना कहीं से गलत नहीं हैं। आज का नया दर्शन ही यह है कि अपनी गलतियों को प्रमाणित करते चले जाओ।'

'विश्वेश्वर, तुम्हारे इस उपकार का आभार किस तरह प्रकट करुँ, मैं समझ नहीं पा रहा। मुझसे भी अधिक किराया देने वाले तुमें मिले, पर तुमने मुझे ही यह जगह दिलवाई। है यह आस्तिकों का मठ है। उनकी जमीन है। मैं नास्तिक हूँ यह जानने के बाद