ना॰ पा॰ तमिल साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। साहित्य अकादमी, राजा सर अण्णामलै चेट्टियार साहिंत्य पुरस्कार से पुरस्कृत, तथा ‘पोन विलंगु’ ‘समुदाय वीथि’ ‘नील नयनंगल’ जैसे सशक्त उपन्यासों के रचयिता का व्यक्तित्व इतना सहज और सरल था कि पहली ही भेंट में उनकी निश्छल आत्मीयता मुझे गहरे छू गयी। पहली ही भेंट में अपनी कई किताबें मुझे भेंट कर ढाली थीं, इस छूट के साथ कि मैं उनकी किसी भी कृति का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हूँ।
‘तुलसी माडम’ उनकी पसंद थी राजा सर अण्णामलै चेट्टियार पुरस्कार से पुरस्कृत इस उपन्यास की कथा भूमि ने मुझे भी प्रभावित किया था। सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह प्रक्रिया विपरीत देश/ काल/भाषा। संस्कृति के लोगों को कितना समीप ला सकती है, इस उपन्यास के पात्रों के माध्यम से बखूबी ना॰ पा॰ ने कहा है। धर्म का आधार बाह्याडेबर ही नहीं होता। होता है, तो इसके भीतर निहित मानवीय संबेदन शीलता। इसे महसूस करने के लिए भाषा, धर्म, प्रांत का सहारा नहीं लेना पड़ता। ‘तुलसी चौरा’ इसी सोच की परिणति है।
ना॰ पा॰ का वह दबंग ब्यक्तित्व, समझौता न करने की जिद्द, स्वतंत्र पत्रकारिता करते हुए भी सैद्धांतिक मूल्यों को बरकरार रखने की ताकत, ‘दीपम’ के माध्यम से नयी प्रतिमाओं को मंच देने का महत्वपूर्ण दायित्व―कितनी बातें इस वक्त याद आ रही हैं। अच्छा लेखन उन्हें प्रभावित करता था। नये से नये लेखक को वे पढ़ते, और मुझे लिखते। कई बार पुस्तकें भी भिजवाते। तमिल साहित्य का अच्छे से अच्छा लेखन मैं पढ़ूँ हिन्दी में उसका अनुवाद कर हिन्दी पाठकों के सामने उन्हें रखूँ―यह उनकी कोशिश रही। उनकी यह विशेषता थी कि―पारस्परिक वैचारिक मतभेदों को वे लेखन के मूल्यांकन के बीच नहीं लाते थे। अपने कटु से कटु आलोचकों की रचनाओं को भी वे पढ़ते, और उनकी उन्मुक्त कंठ से तारीफ भी करते। कई बार