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९४ :: तुलसी चौरा
 

'ऐसी क्या अनहोनी हो गयी है, कि तुम चीखे जा रही हो। चुपचाप भीतर जाओ और अपना काम करो―। कामाक्षी को डपट दिया और पास को देखकर बोले, 'पारू, उसे लेकर ऊपर जाओ।' दोनों ऊपर चले गए। उनके जाने के बाद कामाक्षी को डाँटने, लगे 'तुम्हें अपनी बेटी पर नाराज होने का हक है, पर दूसरों का मन दुखाना क्या अच्छा लगता है? कैसी बातें बोल गयी हो तुम?'

'मैं क्या, पुरा गाँव बोल रहा है। आप शायद नहीं जानते।'

शर्मा जी ताड़ गए कामाक्षी युद्ध की तैयारी कर रही है। फिर कोई झगड़ा बड़े और कमली तक बात पहुँचे यह वह नहीं चाहते थे।

'जाओ, अपना काम करो।' उनके स्वर की तेजी में कामाक्षी सक- पका कर भीतर चली गयी।

देर सबेर जिस समस्या के उठने की प्रतीक्षा कर रहे थे, 'वह अब सिर पर आ पहुँची।

कामाक्षी तो अधूरी जानकारी पर ही भड़क उठी है। शर्मा को एक बात साफ समझ में आ गयी कि अब डांट उपटकर इस समस्या को दबाया नहीं जा सकता।

X XX
 

अभी तो कामाक्षी और कमली के बीच सास बहू का औपचारिक रिश्ता भी नहीं बना था, पर लगता है झगड़ा पहले उठ जायेगा। यही कारण था कि वे रवि से साफ-साफ बातें कर लेना चाहते थे। रवि की योजना क्या है, वह क्या करना चाहता है, यह सब बातें वे साफ-साफ कर लेना चाहते थे। अब बात और नहीं दवायी जा सकती। यह सच है कि बाहर दबाव अभी पड़ना शुरू नहीं हुआ, पर घर के भीतर की स्थितियाँ लगातार खिलाफ होने लगी थीं सीमावय्यर का प्रश्न, घाट पर दूसरे पंडितों की जिज्ञासा, इनके सबके बारे में सोचने लगे। कुल मिलाकर यह बात जल्दी ही गाँव में अफवाह बनकर फैलने वाली हैं।