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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/९८

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९६ :: तुलसी चौरा
 


कि कमली का फूल सा मन दुख जाए।

कामाक्षी की बातों पर, उसके व्यवहार पर लगातार नजर रखना असंभव है। कमली पर उन्हें रह-रहकर तरस आ रहा था। स्वच्छंद युवती को इस घर की रूढ़िवादी मान्यताओं के पिंजड़े में वे कैद नहीं करना चाहते। कमली और रवि के यहाँ आने के पहले जाने कितनी हिचकिचाहट थी। पर उसमें घृणा का अंशमात्र भी नहीं था। कमली के आने के बाद, उससे मिलने के बाद रही सही हिचकिचाहट भी कहीं गायब गयी और उनके भीतर एक तरह का स्नेह भाव पनपने लगा था।' उन्हें लगा, यह देह का आकर्षण मात्र नहीं है दोनों के आकर्षण की बुनियाद है, एक दूसरे की स्वभावगत विशेषताएँ। रवि उसकी गोरी चमड़ी के प्रति आकर्षित होकर उसे मात्र अपनी दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये नहीं लायेगा। यह सचमुच गांधर्व संबंध है। रवि ने ठीक ही लिखा था। दोनों के समर्पण भाव और प्रेम के प्रति वे आश्वस्त थे। देह के अलावा विचारों का, संवेदनाओं का, बुद्धि का साम्य ही इस आकर्षण के बुनियादी कारण रहे होंगे। यह वह बखूबी समझ गए।

कामाक्षी की तरह वे इनसे घृणा नहीं कर सकते। पूर्ण ज्ञान की उदारता जिसमें हो, वह ईर्ष्या, घुणा आदि दुर्गुणों का दास नहीं हो सकता। जहाँ ईष्या द्वेष, जैसी ओछी भावनाएँ हों वहाँ पूर्ण ज्ञान नहीं होता।

रवि लौट आया। शर्मा जी ने ओसारे पर ही उसे रोक कर कहा, 'मैं घाट पर जा रहा था। तो तुम्हें बहुत पूछा, तुम मिले नहीं। मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहता हूँ।'

'सुन्दररामन ने बुलवाया था। वहीं चला गया था।'

'बातें यहीं करें, कि घाट तक चले चलें ।'

'क्यों, यहीं पिछवाड़े में बगीचे में बैठकर बातें कर लेते हैं।'

'चलो, फिर....।'