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मनुष्य का यथार्थ स्वरूप


प्रत्यक्ष उपलब्धि होने से जगत् का यह महान् हित होगा कि जगत् का यह सब विवाद, गोलमाल सब दूर होकर शान्ति का राज्य होगा। यदि जगत् के सभी मनुष्य आज इस महान् सत्य के एक बिन्दु की भी उपलब्धि कर सकें तो उनके लिये यह समस्त जगत्, एक दूसरा ही रूप धारण कर लेगा और यह सब गोलमाल समाप्त हो कर शान्ति का राज्य आ जायगा। यह घिनौनी तथा अमानुषिक जल्दबाज़ी, यह स्पर्धा, जो हमें अन्य सभी के आगे बढ़ निकलने के लिये बाध्य करती है, इस संसार से उठ जायगी। इसके साथ साथ सब प्रकार की अशान्ति, घृणा, ईर्ष्या एवं सभी प्रकार का अशुभ सदा के लिये चला जायगा। उस समय देवता लोग इसी जगत् मे वास करेंगे। उस समय यही जगत् स्वर्ग हो जायगा। और जब देवता देवता में खेल होगा, देवता का देवता से कार्य होगा, देवता देवता में प्रेम होगा तब क्या अशुभ ठहर सकता है? ईश्वर की प्रत्यक्ष उपलब्धि का यही एक बड़ा सुफल है। समाज मे आप जो कुछ भी देखते है वह सभी उस समय परिवर्तित होकर एक दूसरा रूप धारण कर लेगा। तब आप मनुष्य को खराब समझ कर नही देखेगे; यही प्रथम महालाभ है। उस समय आप लोग किसी अन्य अन्याय कार्य करने वाले दरिद्र नर-नारी की ओर घृणापूर्वक दृष्टिपात नहीं करेगे। हे महिलागण, फिर आप, जो दुखिया कामिनी रात भर रास्ते मे भटकती फिरती है, उसके प्रति घृणा पूर्वक दृष्टिपात न करेगी; कारण, आप वहाॅ भी साक्षात् ईश्वर को देखेगी। तब आप मे ईर्ष्या अथवा दूसरों पर शासन करने का भाव उदय नहीं होगा; यह सब चला जायगा उस समय प्रेम इतना प्रबल जायगा कि मानव जाति को सत्पथ पर चलाने के लिये फिर चाबुक की आवश्यकता नहीं रहगी।