यदि संसार के नरनारियों के लाखवें भाग का एक भाग भी
बिल्कुल चुप रह कर एक क्षण के लिये भी कहे, -- "तुम,सभी ईश्वर,
हो; हे मानवगण, हे पशुओ, हे सभी प्रकार के जीवित प्राणियो!
तुम सभी एक जीवन्त ईश्वर के प्रकाश हो,"तो आधे घण्टे के
अन्दर ही समस्त जगत् का परिवर्तन हो जायगा। उस समय चारों
ओर घृणा का बीज न फैला कर, ईर्ष्या और असत् चिन्ता का प्रवाह
न फैला कर सभी देशो के लोग सोचेगे कि सभी 'वह' है। जो
कुछ तुम देख रहे हो या अनुभव कर रहे हो, वह सब वही है।
तुम्हारे भीतर अशुभ न रहने पर तुम अशुभ किस तरह देखोगे?
तुम्हारे भीतर ही यदि चोर नहीं है तो तुम किस प्रकार चोर को
देखोगे? तुम स्वयं यदि खूनी नहीं हो तो किस प्रकार खूनी को देख
सकते हो? साधु हो जाओ, तो असाधुभाव तुम्हारे अन्दर से एक
दम चला जायगा। इसी प्रकार समस्त जगत् का परिवर्तन हो जायगा,
यही समाज का महान् लाभ है। मनुष्य के पक्ष मे यह महान् लाभ है।
इन्ही सब भावों को भारत में प्राचीन काल में अनेक महात्माओ ने
आविष्कृत और कार्य रूप मे परिणत किया था। किन्तु आचार्यों की
सकीर्णता तथा देश की पराधीनता आदि कारणो से यह सब चिन्ता
चारो ओर प्रचार न पा सकी। ऐसा होने पर भी ये सब महान्
सत्य है। जहाॅ भी इन विचारों का प्रभाव पड़ा है वही मनुष्य ने,
देवत्व को प्राप्त किया है। इसी प्रकार के एक देवतास्वरूप मनुष्य के
द्वारा मेरा समस्त जीवन परिवर्तित हो गया है। इस सम्बन्ध मे आगामी
रविवार को मैं आप से कुछ कहूॅगा। इस समय यही सब भाव जगत् मे
प्रचार करने का समय आ गया है। मठों मे आबद्ध न रह कर, केवल
पण्डितो के पढ़ने के लिये दार्शनिक पुस्तक-समूह मे आबद्ध न रह
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ज्ञानयोग