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ज्ञानयोग

भविष्य के पक्षियों के बीज। तिर्यग्जातियों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार होता है और मनुष्य के सम्बन्ध में भी। प्रत्येक पदार्थ के ही जैसे कुछ बीज होते है, कुछ मूल उपादान होते है, कुछ सूक्ष्म आकार से लेकर स्थूल से स्थूलतर होते जाते है। कुछ समय तक ऐसे ही चलता है, फिर उसी सूक्ष्म रूप में जा कर उनका लय हो जाता है। वृष्टि की एक बूँद जिसके भीतर इस समय सुन्दर सूर्यकिरणे खेल रही है, वायु के सहारे बहुत दूर जाकर पर्वत पर पहुँचता है, वहाँ बर्फ में परिणत हो जाता है, फिर जल बन जाता है और सैकड़ों मील की यात्रा करके अपने उत्पत्तिस्थान समुद्र में पहुँच जाता है। हमारे चारो ओर स्थित समस्त प्रकृति का यही नियम है; और हम जानते है कि आजकल बर्फ की चट्टाने और नदियाँ बड़े बड़े पर्वतों क ऊपर क्रिया कर रही है, वे धीरे धीरे और निश्चित रूप से उन्हें (पर्वतों को) घिस रही है, घिस कर उन्हे बालू कर रही है, वही बालू समुद्र में जाकर गिर रही है― समुद्र के अन्दर स्तर पर स्तर जम रही है, अन्त में वह पहाड़ की भाँति सख्त हो जाती है और भविष्य में वही पर्वत बन जायगी। फिर वह पिस कर बालू बन जायगी―बस यही क्रम है। बालुका से इन पर्वतमालाओं की उत्पत्ति है और बालुका में ही इनकी परिणति है। बड़े बड़े नक्षत्रों के सम्बन्ध में भी यही बात है; हमारी यह पृथ्वी भी नीहारिकामय एक विशेष पदार्थ (Nebulae) से प्रारम्भ होकर क्रमशः शीतल होती गई, अन्त में हमारे निवास करने की भूमि के रूप में एक विशेष आकृति की धरणी बन गई। भविष्य में यह और भी शीतल होते होते नष्ट हो जायगी, खण्ड खण्ड हो जायगी, धूल हो जायगी, और फिर उसी मूल नीहारिकामय सूक्ष्म