पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९३
जगत्


खोज करने का उन्हे साहस नही होता है। जब हम सुनते है कि प्राचीन काल के किसी साधु या ऋषि ने सत्य को प्रत्यक्ष किया है तो हम कह देते है कि वह सब भूल है; परन्तु यदि कोई कहे कि हक्सले का मत है या टिण्डाल ने बताया है तो हम तुरन्त सारी बाते मान लेते है। प्राचीन कुसस्कारों की जगह हम आधुनिक कुसंस्कार लाये है, धर्म के प्राचीन पोप के बदले हमने विज्ञान के आधुनिक पोप का स्वागत किया है। अतएव हमे मालूम हो गया कि स्मृति-सम्बन्धी शंका खोखली है। और पुनर्जन्म के बारे मे जिन आपत्तियो की अवतारणा की गयी है उनमे यही एक है जिसे विज्ञ लोग सामने ला सकते है।

हमने यह देखा है कि पुनर्जन्मवाद सिद्ध करने के लिये साय ही साय स्मृति भी रहे--यह प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। फिर भी हम दाबे के साथ यह कह सकते है कि अनेको मे ऐसी स्मृति आयी है और जिस जन्म मे तुम लोगो को मुक्तिलाभ होगा उस जन्म मे तुम लोग भी ऐसी स्मृति के अधिकारी बनोगे। तभी तुम्हे मालूम होगा कि जगत् स्वप्न-सा है, तभी तुम अन्तस्तल से अनुभव कर सकोगे कि तुम इस जगत् मे नट मात्र हो और यह जगत् रंगभूमि है, तभी प्रचण्ड अनासक्ति का भाव तुम्हारे भीतर उदित होगा--तभी सब भोगवासनाॅए, जीवन से इतना प्रेम--यह संसार आदि,सब चिरकाल के लिये लुप्त हो जायेगे। तब तुम्हे स्पष्ट मालूम हो जायगा कि जगत् मे तुम कितने बार आये हो, कितने लाखो बार तुमने पिता, माता, पुत्र, कन्या, स्वामी. स्त्री, बन्धु, ऐश्वर्य, शक्ति लेकर इसी जगत् में जीवन बिताया है। यह सब कितने बार हुआ था, फिर कितने बार चला गया था। कितने बार संसार-तरंग के सर्वोच्च शिखर पर तुम चढ़े थे और कितने ही वार नैराश्य के अतल गर्त में

१३