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ज्ञानयोग

भृतिया आत्मा की है ? ऐसा कहना ही ठीक है कि वे मव शरीर के धर्म है । इसे आनुवशिक सचार (Hereditary Transmission) ही कह सकते है । यही शेष प्रश्न है। जिन सब संस्कारों को लेकर मैने जन्म लिया है वे हमारे पूर्वजो के संचित सस्कार है, ऐसा हम क्यो न कहे ? छोटे जीवाणु से लेकर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य तक समो के कर्मसत्कार मुझमे मिले हुए हैं, किन्तु आनुवशिक संचार के कारण ही मुझमें वे आकर मिल गये हैं। यदि हम ऐसा कहते तो कौनसी बाधा होती ? यह प्रश्न बहुत ही सूक्ष्म है । हॉ, इस आनुवंशिक संचार को कुछ अश तक हम मानते है। लेकिन हम इतनाही मानते है कि इससे आत्मा को रहने के लिये एक स्थान मिल जाता है। हम अपने पूर्व कर्मों के द्वारा शरीरविशेष का आश्रय लेते हैं | और जिन्होंने उस आत्मा को सतान के रूप में प्राप्त करने को स्वयं को उपयुक्त किया है, उनसे ही वह आत्मा उपयुक्त उपादान ग्रहण करती है। आनुवंशिक संचारवाढ ( Doctrine of Heredity ) किसी प्रमाण के विना ही एक अदभुत बात मानता है कि पन के मस्कारों की छाप जड में रह सकती है। जब मै तुम्हारी ओर देखता हूँ तब मेरे चिन्ता-हट म तरग उठती है। वह तरंग थोड़े ही नमय मे लुप्त हो जाती है; किन्तु सूक्ष्म रुप मे वह तरंग के रूप मे ही वर्तमान रहती है | हम यह समझ सकते हैं। हम यह भी समझ सकते है कि भौतिक सस्कार शरीर में रह सकते हैं। किन्तु इसका क्या प्रमाण है कि शरीर के भग होने पर मानसिक सस्कार शरीर मे रहते है ?किसके द्वारा ये सस्कार सचारित होते हैं ? मानो, मन का प्रत्येक मम्कार शरीर में रहना सम्भव है; मानो आनुवंशिकता के अनुसार आदिम मनुष्य से लेकर सव पूर्वजों के संस्कार मेरे पिता के शरीर मे पर्नेमान है एवं पिता के शरीर से मै उन्हें प्राप्त कर रहा हूँ। कैसे ?