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जगत्

तुम शायद कहोगे जीवाणुकोप ( Blo plasrmic Cell ) के द्वारा। किन्तु यह कैसे सभव हो सकता है ? क्योंकि पिता का शरीर तो संतान मे सम्पूर्ण रूप से नही आता है। एक ही पिता-माता की कई सतान हो सकती है । इसलिये यदि हम यह आनुवशिक संचारवाद मान ले तो यह भी हमे अवश्य स्वीकार करना पडेगा कि प्रत्येक संतान के जन्म के साथ-ही-साथ पिता-माता को भी अपनी निजी मनोवृत्ति का कुछ अंश खोना पड़ेगा, (कि उन लोगो के मत से सचारक व सचार्य एक अर्थात् भौतिक है ) एवं यदि तुम कहोगे कि उनकी सारी मनोवृत्तियों ही सचारित होती है तो यह बात माननी पड़ेगी कि प्रथम सन्तान के जन्म के बाद ही उन लोगो का मन पूर्ण रूप से शून्य हो जायगा । फिर यदि जीवाणुकोप में चिरकाल के अनत सस्कार रह जायें तो पूछा जायगा कि ये कहाँ रहते हैं और किस रूप से 2 यह पक्ष बिलकुल असम्भव है । जब तक ये जड़बाढी प्रमाणित न कर सके कि कैसे चे संस्कार उस कोप मे रह सकते है तथा कहाँ रह सकते है एवं “ भौतिक कोप मे ये मनोवृत्तियाँ निद्रित रहती है " इसका तात्पर्य वे जब तक समझा नहीं सकते तब तक उनका सिद्धान्त मान लेना असम्भव है । इतना तो हम अच्छी तरह समझ जाते है कि ये संस्कार मन के भीतर ही निवास करते है । मन ही बार बार जन्म ग्रहण करता आता है, मन ही अपने उपयोगी उपादान ग्रहण करता है और इस मन ने जिस शरीरविशेप के धारण करने के उपयुक्त कर्म किये है, तन्निर्माणोपयोगी उपादान जब तक वह नहीं पाता, तब तक उसे राह देखनी पड़ती है। यह हम अनुभव करते हैं । अतएव आत्मा के लिए व्हगठनोपयोगी उपाठान प्रस्तुत करने तक ही आनुवंशिक संचारबाट स्वीकृत किया जा सकता है। परन्तु ,