पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२३
बहुत्व में एकत्व

अर्थात् जब सभी इन्द्रियाँ संयत हो जाती हैं, जब मनुष्य इनको अपना दास बना कर रखता है, जब वे मन को चंचल नहीं कर पाती, तभी योगी चरम गति को प्राप्त होता है।

यदा सर्वे प्रमुच्चन्ते कामा येऽस्य हृदि श्रिता।
अथ मोर्त्योऽमृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते॥
यदा सर्वे प्रभिद्यन्ते हृदयस्येह ग्रन्थयः।
अथ मोर्त्योऽमृतो भवत्येतावद्धयनुशासनम्॥

(कठ॰ अ॰ २, वल्ली ३, श्लोक १४, १५)

"जो सब कामनाये मर्त्य जीव के हृदय का आश्रय लेकर रहती है वे सब जब नष्ट हो जाती है तब मनुष्य अमर हो जाता है और यही ब्रह्म को प्राप्त होता है। जब इस संसार में हृदय की सभी ग्रन्थियाँ कट जाती है तब मनुष्य अमर हो जाता है, यही उपदेश है।"

साधारणतः लोग कहते है कि वेदान्त, केवल वेदान्त ही क्यों, भारतीय सभी दर्शन और धर्म इस जगत् को छोड़ कर इसके बाहर जाने का उपदेश देते है। किन्तु ऊपर कहे हुये दोनो श्लोकों से प्रमाणित होता है कि वे स्वर्ग अथवा अन्य कही जाना नहीं चाहते, प्रत्युत वे कहते हैं कि स्वर्ग के भोग, सुख, दुःख सब क्षणस्थायी है। जब तक हम दुर्बल रहेगे तब तक हमे स्वर्ग नरक आदि में घूमना पड़ेगा, किन्तु आत्मा ही एक मात्र वास्तविक सत्य है। वे यह भी कहते है कि आत्महत्या द्वारा जन्म-मृत्यु के इस प्रवाह को अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। हॉ. वास्तविक मार्ग पाना अन्यन्त कठिन