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ज्ञानयोग


भित्तिहीन, आधारहीन है। तुम प्राण के विभिन्न विकासों को लेकर आलोचना कर रहे हो, किन्तु यदि तुमसे पूछूॅ कि प्राण क्या है, तो तुम कहोगे, हम नहीं जानते। यह ठीक है कि तुम्हे जो अच्छा लगे करो, कोई इसमे बाधा नहीं देता, किन्तु मुझे अपने ही भाव में रहने दो।

और यह भी लक्ष्य करना कि मेरा जो भाव है उसे मै कार्य रूप मे परिणत करता रहता हूॅ। अतएव यह कहना व्यर्थ है कि अमुक मनुष्य क्रियात्मक (Prachcal) है, अमुक नही। तुम एक ढंग से क्रियात्मक हो, मै दूसरे ढग से। एक ऐसे भी लोग हैं कि जिनसे कहो कि एक पैर से खडे रहने से सत्य मिलेगा, तो वे एक पैर से खडे रहेगे। और एक इस प्रकार के लोग है--उन्होंने सुना कि अमुक जगह सोने की खान है, किन्तु उसके चारों ओर असभ्य जातियाॅ रहती है। तीन आदमियों ने यात्रा की। उनमे दो शायद मर गये--एक सफल हुआ। उस व्यक्ति ने सुना है कि आत्मा नाम की कोई वस्तु है, किन्तु वह पुरोहितो के ऊपर ही इसकी मीमांसा का भार देकर निश्चिन्त हो जाता है। किन्तु पूर्वोक्त व्यक्ति स्वर्ण के लिये असभ्यों के बीच जाने के लिये राजी नहीं है। वह कहता है कि इस कार्य में विपत्ति की आशङ्का है। किन्तु यदि उससे कहा जाय कि एवरेस्ट पर्वत के ऊपर, समुद्र की सतह से ३०००० फुट ऊपर एक ऐसा आश्चर्यजनक साधु रहता है जो उसे आत्मज्ञान दे सकता है, तो वह तुरन्त ही बिना कपडा आदि लिये ही जाने को प्रस्तुत हो जाता है। इसी चेष्टा मे शायद ४०००० लोग मर जा सकते है, किन्तु एक व्यक्ति को सत्य की प्राप्ति हुई। वह भी एक दृष्टि से क्रियात्मक