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बहुत्व मे एकत्व


व्यक्ति है--किन्तु लोगो की भूल इसी मे है कि तुम जितने को जगत् कहते हो वही सब कुछ है, यह समझना। तुम्हारा जीवन क्षणस्थायी इन्द्रियो का भोग मात्र है--उसमे नित्य कुछ भी नही है, प्रत्युत उसमें दुःख क्रमश: बढता ही जाता है। हमारे मार्ग मे अनन्त शान्ति है, तुम्हारे मार्ग मे अनन्त दुःख है।

मैं यह नहीं कहता जिसे तुम वास्तविक क्रियात्मक मार्ग कहते हो वह भ्रम है। तुमने जिस रूप मे समझा है वही करो। उससे परम मंगल होगा-लोगों का बड़ा हित होगा, किन्तु यह कहकर हमारे पक्ष पर दोषारोप मत करना। हमारा मार्ग भी हमारे विचार से हमारे लिये क्रियात्मक मार्ग है। आओ, हम सब अपने अपने ढंग से कार्य करे। ईश्वर की इच्छा से यदि हम दोनो ही ओर कार्यात्मक होते तो बड़ा अच्छा होता। मैंने ऐसे अनेक वैज्ञानिक देखे है जो विज्ञान और अध्यात्मतत्त्व दोनों ओर से क्रियात्मक है--और मैं आशा करता हूॅ कि एक समय आयेगा जब समस्त मानवजाति इसी ढग की क्रियात्मक हो जायगी। मान लो एक कढाई मे जल गरम हो रहा है--उस समय क्या होता है इस बात को यदि तुम लक्ष्य करो तो देखोगे कि एक कोने मे एक बुद्बुद उठ रहा है, दूसरे कोने में एक और उठ रहा है। ये बुद्बुद क्रमशः बढते जाते हैं--चार पांच एकत्र हुये और बाद मे सब एकत्र होकर एक प्रबल गति आरम्भ हो गई। यह जगत् भी ऐसा ही है। प्रत्येक व्यक्ति मानो एक बुद्बुद है, और विभिन्न जातियाॅ मानो कई एक बुद्बुद समष्टि रूप है। क्रमशः जातियो मे परस्पर मिलन होता है--मेरी निश्चय धारणा है कि एक दिन ऐसा आयेगा जब जाति नामक कोई वस्तु नहीं रहेगी--जाति और जाति