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ज्ञानयोग

गया। देवता भी समय समय पर अपने घर में नहीं रहते हैं। यमराज उस समय घर पर नहीं थे, इसलिये उस बालक को तीन दिन तक उसी तरह उनकी प्रतीक्षा में रहना पड़ा। चौथे दिन यम अपने घर आये।

यम बोले, "हे विद्वान्! तुम पूजनीय अतिथि होकर भी तीन दिन तक बिना कुछ खाये पिए हमारे घर में रहे। हे ब्रह्मन्! तुम्हें प्रणाम है, हमारा कल्याण हो। मैं घर पर नहीं था, इसका मुझे बहुत दुःख है। किन्तु मैं इस अपराध के प्रायश्चित्त स्वरूप तुम्हें प्रत्येक दिन के लिये एक एक करके तीन वर देने को प्रस्तुत हूँ, तुम वर माँगो।" बालक ने पहला वर यह माँगा—"आप मुझे पहला वर यह दीजिये जिससे कि मेरे प्रति पिताजी का क्रोध दूर हो जाय, वे जिससे मेरे प्रति प्रसन्न हों, और जब आप मुझे प्रस्थान करने के लिये आज्ञा देंगे और जब मैं पिता के निकट जाऊँ तो उस समय वे मुझे पहचान सकें।" यम ने कहा—'तथास्तु'। नचिकेता ने द्वितीय वर में स्वर्ग पहुँचाने वाले यज्ञविशेष के विषय में जानने की इच्छा की। हमने पहले ही देखा है, वेद के संहिता-भाग में हमलोग केवल स्वर्ग की बात पाते हैं। वहाँ सबका शरीर ज्योतिर्मय होता है, और वे अपने पूर्व पूर्व पितरों के साथ वहाँ वास करते हैं। क्रमशः अन्यान्य भाव आये, किन्तु इन सभों से लोगों के प्राण पूर्ण तृप्त न हो सके। इस स्वर्ग से भी कुछ उच्चतर उन्हें आवश्यक ज्ञात हुआ। स्वर्ग में रहना इस जगत् में रहने की अपेक्षा कुछ भिन्न नहीं है। जिस प्रकार एक स्वस्थ धनिक नवयुवक का जीवन होता है, उसी प्रकार स्वर्गीय जीवों का भी जीवन होता है, भेद केवल इतना है कि उनकी भोग-सामग्री होती है और उनका शरीर नीरोग, स्वस्थ एवं अधिक बलशाली