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ज्ञानयोग


भी सरल बात नहीं है, यह बात सत्य है। किन्तु मैं आपके सदृश इस विषय का कोई दूसरा वक्ता भी नहीं पा सकता, और इस वर के समान दूसरा कोई वर भी नहीं है।"

यम बोले--" हे नचिकेता! शतायु पुत्र, पौत्र, पशु, हाथी, सोना, घोडा आदि माँग लो। इस पृथ्वी के ऊपर राज्य करो, एवं जितने दिन तुम जीने की इच्छा करो उतने दिन तक जीवित रहो। इसके समान और कोई दूसरा वर यदि तुम्हारे मन मे हो तो उसे भी मॉग लो, अथवा धन और दीर्घ जीवन की प्रार्थना कर लो। अथवा हे नचिकेता! तुम विस्तृत पृथ्वीमण्डल पर राज्य करो, मै तुम्हे सभी प्रकार की काम्यवस्तुओं से संयुक्त करूॅगा। पृथ्वी में जो जो काम्यवस्तुएँ दुर्लभ है, उनकी प्रार्थना करो। गीत और वाद्य मे विशारद इन रथारूढ रमणियों को मनुष्य नहीं पा सकता। हे नचिकेता! इन सभी रमणियों को मैं तुम्हे देता हूँ, ये तुम्हारी सेवा करेगी, किन्तु तुम मृत्यु के सम्बन्ध मे जिज्ञासा मत करो।"

नचिकेता ने कहा--"ये सभी वस्तुएँ केवल दो दिनों के लिये है, ये इन्द्रियों के तेज को हरण करती है। अतिदीर्घ जीवन भी अनन्त काल की तुलना में वस्तुतः अत्यन्त अल्प है। इसलिये ये हाथी, घोड़े, रथ, गीत, वाद्य आदि तुम्हारे ही पास रहे। मनुष्य धन से कभी तृप्त नहीं हो सकता। जब मै तुम्हे देखूँगा ही, तो इस वित्त की चिरकाल के लिये किस तरह रक्षा कर सकूॅगा? तुम जितने दिन तक इच्छा करोगे, मैं उतने ही दिन तक जीवित रह सकूँगा। मैने जिस वर की प्रार्थना की है, केवल वही वर मै चाहता हूॅ।"

यम इस समय सतुष्ट हुए। वे बोले--" परमकल्याण (श्रेय) और आपातरम्य भोग (प्रेय) इन दोनों का उद्देश्य भिन्न है, ये दोनों