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अपरोक्षानुभूति


इस सुख का भोग कर रहे हो। तुम उसे छोड़कर उच्चतर कोई भी सुख नही जानते, किन्तु हमारे लिये यही सबसे बढ़कर सुखकर है। और यदि तुम्हे अपने मनोनुकूल सुखान्वेषण का अधिकार है, तो हमें भी है।" हमारा यही भ्रम है कि हम समस्त जगत् को अपने ही भाव से बनाना चाहते है। हम अपने ही मन को समस्त जगत्का मापदण्ड बनाना चाहते हैं। तुम्हारी दृष्टि में इन्द्रियविषयो मे ही सर्वापेक्षा अधिक सुख है। किन्तु हमे भी उन्हीं से सुख मिलेगा, इसका कोई अर्थ नहीं है। जिस समय तुम इस मत को लेकर जिद्द करते हो, तभी हमारा तुमसे मतभेद होता है। सांसारिक हितवादी (Worldly Utilitarian) के साथ धर्मवादी का यही प्रभेद है। सांसारिक हितवादी कहते हैं--"देखो, हम कितने सुखी है!"

"हम तुम्हारे धर्म-तत्वो को लेकर माथापच्ची नहीं करते। वे तो अनुसधानातीत है। उन सभी का अन्वेषण न कर हम बड़े सुख मे हैं। "बहुत अच्छा, अच्छी बात है। है हितवादियो! तुम लोग जिससे सुखी होते हो, वह ठीक है। किन्तु यह संसार बड़ा भयानक है। यदि कोई व्यक्ति अपने भाई का कोई अनिष्ट करके सुख प्राप्त कर सके, तो ईश्वर उसकी उन्नति करता है। किन्तु जब वही व्यक्ति आकर हमे अपने मत के अनुसार कार्य करने का परामर्श देता है और कहता है, यदि तुम इस तरह नहीं करते हो तो तुम मूर्ख हो तो उससे हम कहते है, तुम भ्रान्त हो, क्योंकि तुम्हारे लिये जो सुखकर है, उसे यदि हम करे, तो हम प्राण रखने में भी समर्थ न हो सकेगे। यदि हमे सोने के कुछ टुकड़ों के लिये दौडना पडे, तो हमारा जीना ही निरर्थक होगा। धार्मिक व्यक्ति हितवादी को यही