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आत्मा का मुक्त स्वभाव


प्रकार की कोई वस्तु हो, जिससे उसे बद्ध किया जा सके, तो अवश्य यह कहना होगा कि आत्मा मुक्तस्वभाव थी ही नही, अतएव तुमने उसे जो मुक्तस्वभाव कहा था वह तुम्हारा भ्रम मात्र है। अतएव तुम्हे यह सिद्धान्त अवश्य ही स्वीकार करना होगा कि आत्मा स्वभाव से ही मुक्तस्वरूप है। इसके अतिरिक्त और कुछ हो ही नही सकती। मुक्तस्वभाव का अर्थ है--किसी बाह्य वस्तु के अधीन न होना--अर्थात् उसके अतिरिक्त कोई भी दूसरी वस्तु उसके ऊपर हेतु रूप में कोई कार्य नहीं कर सकती।

आत्मा कार्य-कारण-सम्बन्ध से अतीत है, और इसीसे आत्मा के सम्बन्ध मे हमारी उच्च उच्च धारणाये उत्पन्न होती है। यदि यह अस्वीकार किया जाय कि आत्मा स्वभावतः मुक्त है अर्थात् बाहर की कोई भी वस्तु उसके ऊपर कार्य नहीं कर सकती तो आत्मा के अमरत्न की कोई धारणा प्रस्थापित नहीं की जा सकती। क्योंकि, मृत्यु हमारे वहि स्थित किसी वस्तु के द्वारा किया हुआ कार्य है। इससे ज्ञात होता है कि हमारे शरीर के ऊपर बाहरी कोई दूसरा पदार्थ कार्य कर सकता है, मानलो मैने थोड़ा सा विष खाया, उससे मेरी मृत्यु हुई--इससे जाना जाता है कि हमारे शरीर के ऊपर विष नामक बाहरी कोई पदार्थ कार्य कर सकता है। यदि आत्मा के सम्बन्ध में यह सत्य हो, तो आत्मा भी बद्ध है। किन्तु यदि यह सत्य है कि आत्मा मुक्तस्वभाव है, तो यह भी स्वभावत ज्ञात होता है कि बाहरी कोई भी पदार्थ उसके ऊपर कार्य नहीं कर सकता है और न कर ही सकेगा। ऐसा होने पर आत्मा कभी मर नहीं सकती, एवं आत्मा कार्य-कारण-सम्बन्ध मे अतीत भी होगी। आत्मा का मुक्त स्वभाव, उसका अमरत्व एवं