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ज्ञानयोग

एकमात्र अव्यर्थ महौषधि है। और अद्वैतवाद जिस प्रकार का बल और जैसी शक्ति देता है, उस प्रकार का बल और शक्ति किसी से भी नहीं मिल सकती। अद्वैतवाद हमें जिस प्रकार नीति-परायण बनाता है, उस प्रकार कोई भी हमें नीति-परायण नहीं बना सकता। जिस समय समस्त दायित्व हमारे कन्धों पर आ पड़ता है, उस समय हम जितने उच्च भाव से कार्य कर पाते है, उतना और किसी भी अवस्था में उस तरह नहीं कर पाते।

मैं तुम लोगों से यह पूछना चाहता हूँ कि यदि एक नन्हें बच्चे को तुम्हारे हाथ सौंप दूँ तो तुम उसके प्रति कैसा व्यवहार करोगे? उस क्षण के लिए तुम लोगों का जीवन बदल जायगा। तुम्हारा स्वभाव किसी भी प्रकार का क्यों न हो, अन्ततः उन क्षणों के लिए तुम सम्पूर्ण निःस्वार्थी बन जाओगे। यदि तुम्हें उत्तरदायी बनाया जाय तो तुम्हारी सारी पापप्रवृत्तियाँ दूर हो जायँगी, तुम्हारे चरित्र में परिवर्तन हो जायगा। इस प्रकार जब सारे उत्तरदायित्व का बोझ हम पर पड़ता है तभी हम अपने सर्वोच्च भाव में आरोहण करते हैं। जब हमारे सारे दोष और किसीके मत्थे नहीं मढ़े जाते, जब शैतान या भगवान किसी को भी हम अपने दोषों के लिए उत्तरदायी नहीं समझते तभी हम सर्वोच्च भाव में पहुँच जाते हैं। अपने भाग्य के लिए मैं स्वयं ही उत्तरदायी हूँ। मैं स्वयं ही शुभाशुभ दोनों का कर्ता हूँ। किन्तु मेरा स्वरूप शुद्ध तथा आनन्द मात्र है।

न मृत्युर्न शंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म।