पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३१६
ज्ञानयोग

उसे कतिपय शक्तियों की समष्टि मात्र मानते हैं तो फिर आपका 'मैपन' कहाँ रहा? जो कुछ भी मिश्रण से उत्पन्न है वह शीघ्र अथवा विलम्ब से अपने कारणीभूत पदार्थ में लय हो जाता है। जो कुछ भी कतिपय कारणों के समवाय से उत्पन्न है उसी की मृत्यु, उसी का विनाश अवश्यम्भावी है। शीघ्र या विलम्ब से वह विश्लिष्ट हो जायगा, भग्न हो जायगा और अपने कारणीभूत पदार्थ में परिणत हो जायगा। आत्मा कोई भौतिक शक्ति अथवा चिन्ता-शक्ति नहीं है। वह चिन्ता-शक्ति का स्रष्टा है, स्वयं चिन्ता-शक्ति नहीं। वह शरीर का गठनकर्ता है किन्तु वह स्वयं शरीर नहीं है। क्यों? शरीर कभी आत्मा नहीं हो सकता, क्योंकि वह चैतन्यवान् नहीं है। मृत व्यक्ति अथवा कसाई की दूकान का मांसखण्ड कभी चैतन्यवान् नहीं होता। हम चैतन्य शब्द से क्या समझते हैं? प्रतिक्रिया शक्ति।

और गम्भीर भाव से इस तत्व की आलोचना कीजिये। हमारे सम्मुख यह एक जलघट है, मैं उसे देख रहा हूँ। होता क्या है? इस घट से कुछ प्रकाश-किरणें निकल कर मेरी आँख में प्रवेश करती है। वे मेरे अक्षिजाल (Retina) के ऊपर एक चित्र अंकित करती है। और यह चित्र जाकर मेरे मस्तिष्क में पहुँचता है। शरीरविज्ञानवेत्तागण जिसको अनुभवात्मक स्नायु (Sensory nerves) कहते हैं उन्हीं के द्वारा यह चित्र भीतर मस्तिष्क में ले जाया जाता है। किन्तु अभी देखने की क्रिया पूरी नहीं हुई, क्योंकि अभी तक भीतर की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। मस्तिष्क के अन्दर स्थित जो स्नायु-केंद्र है वह इसे मन के पास ले जायगा, और मन उसके ऊपर प्रतिक्रिया करेगा। इस प्रतिक्रिया के होते ही घट मेरे सम्मुख