पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२
ज्ञानयोग

युग को प्राचीन युग की अवनत अवस्था ही मानते है। जगत् की अवनति क्रमशः बढ़ती ही गई। इसके बाद जब जलप्रलय हुआ तो अधिकाश जगत् उसमे डूब गया। फिर उन्नति आरम्भ हुई। और अब यह जगत् अपनी उसी प्राचीन पवित्र अवस्था को प्राप्त करने के लिये धीरे धीरे अग्रसर हो रहा है। आप सब Old Testament (पुराने बाइबिल) में जलप्रलय की कथा जानते ही है। यही एक कथा प्राचीन बेबीलोन, मित्र, चीन एवं हिन्दू धर्म में भी प्रचलित थी। हिन्दू शास्त्र में जलप्रलय का इस प्रकार का वर्णन मिलता है,― महर्षि मनु जब एक दिन गंगातट पर सन्ध्या वन्दन में लगे थे, तब एक छोटी सी मछली ने उनसे आकर कहा―'मुझे आश्रय दीजिये।' मनु ने उसी क्षण पास रक्खे हुए पात्र में उसे रख कर उससे पूछा― 'तू क्या चाहती है?' मछली बोली―'एक बड़ी भारी मछली मुझे मार डालने के लिये मेरा पीछा कर रही है। मेरी रक्षा कीजिये।' मनु उसे घर ले गये, प्रातःकाल देखा, वह बढ़ कर पात्र के बराबर गई है। मछली बोली―'मैं अब इस पात्र में नहीं रह सकती।' तब मनु ने उसे एक कुण्ड में रख दिया। दूसरे दिन वह कुण्ड के बराबर हो गई और कहने लगी―मैं इसमे भी नहीं रह सकती।' तब मनु ने उसे नदी में डाल दिया। प्रातःकाल को देखा कि उसका शरीर सारी नदी में फैल गया है। तब उन्होने उसे समुद्र में डाल दिया। तब मछली कहने लगी,―'मनु, मैं जगत् का सृष्टिकर्ता हूँ। मैं जलप्रलय से जगत् को ध्वंस करूँगा। तुम्हे साव- धान करने के लिये मैं मछली का रूप धारण करके आया था। तुम एक बहुत बड़ी नौका बना कर सभी प्रकार के प्राणियो का एक एक जोड़ा उसमे रख कर उनकी रक्षा करो और स्वयं भी सपरिवार उसमे बैठो।